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अगर पहले की तरह धराली में देवदार के पेड़ होते तो बच जाता गांव, रुक सकता था बादल फटने जैसा हादसा

आज जिस तरह से पेड़ों को कटा जाता है उसमें तो धराली जैसे कांड हो ही जायेगा। आपको बतादें कि पेड़ ​हमारी जीवनी है यह हमे आक्सीजन देते है जिससे हम जीवित हैं। हमें पेड़ों की रक्षा करनी चाहिये। पर लोग मकान बनाने के चक्कर में पेड़ों को काट रहें हैं।

By Sudha 
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नैनीताल। आज जिस तरह से पेड़ों को कटा जाता है उसमें तो धराली जैसे कांड हो ही जायेगा। आपको बतादें कि पेड़ ​हमारी जीवनी है यह हमे आक्सीजन देते है जिससे हम जीवित हैं। हमें पेड़ों की रक्षा करनी चाहिये। पर लोग मकान बनाने के चक्कर में पेड़ों को काट रहें हैं। जिसका न​तीजा है धराली में बादल फटना और सब कुछ खत्म जनधन सब एक झटके में खत्म होगया।आपको बतादें कि उत्तराखंड में जहां धराली बसा है वहां देवदार के घने जंगल होते थे। जिससे ये पेड़ अपनी मजबूत लकड़ी से जमीन को बांधे रहता है।

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नैनीताल और अल्मोड़ा के जंगलों में ये पेड़ काफी पाए जाते हैं। सूत्रों के हावाले से हिमालय पर रिसर्च बुक लिख चुके प्रोफेसर शेखर पाठक का कहना है कि ये पेड़ धराली हादसा रोक सकते थे। प्रोफेसर शेखर पाठक बताते हैं कि उत्तराखंड में कभी हिमालयी क्षेत्रों में जंगल देवदार के पेड़ों से भरे थे। यहां 1 वर्ग किलोमीटर में लगभग 400-500 देवदार पेड़ थे। धराली जहां बादल फटा वहां इन पेड़ों की संख्या बहुत ही ज्यादा थे। जिससे ऐसे आपदा आने के कम चांस थे।

ये देवदार के लंबे पेड़ अपनी पकड़ जमीन में मजबूत बनाये रहते हैं।जिससे अगर कभी बादल फटने जैसा कोई भी हादसा हुआ तो उसके मलबे और तेज पानी रुक जाते हैं। प्रोफेसर पाठक के अनुसार देवदार के पेड़ों को काटकर मकान बनाए गए और कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए। इसका परिणाम ये हुआ कि अब 1 वर्ग किमी में औसतन 200-300 पेड़ ही बचे हैं और वे भी कमजोर।

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प्रोफेसर पाठक ने बताया कि हिमालय की मजबूती में देवदार के पेड़ों ने अहम जिम्मेदारी निभाई है। बादल फटने पर ये पेड़ हिमालय की मिट्‌टी को बिल्कुल जकड़ देता है। जिससे ऐसे आपदा कोई जनधन हानि नहीं हो पाता था। इस लिये पेड़ को कटने से बचाये, जंगल को बर्बाद न करें। आज मानव को बचाने में जल जंगल और जमीन बहुत जरुरी हैं। और इन चीजों को बचाना हमारी अहम जिम्मेदारी है।

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