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भारत की रसोई, विश्वमंच पर प्रबंधन का उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ उदाहरण

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत की गृहणियों की रसोई में कोई तराजू नहीं होता है, गृहिणियों को भोजन निर्माण के लिए किसी संस्थान में अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होती है।

By Shital Kumar 
Updated Date

भोपाल : उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर) के सभागृह में, ‘युवा सामाजिक विज्ञान संकाय के लिए आयोजित दो सप्ताह के दक्षता निर्माण कार्यक्रम’ के समारोप सत्र में सहभागिता की। इस अवसर पर मंत्री श्री परमार ने प्रतिभागी प्राध्यापकों को प्रमाण पत्र भी वितरित किए।

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उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत की गृहणियों की रसोई में कोई तराजू नहीं होता है, गृहिणियों को भोजन निर्माण के लिए किसी संस्थान में अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होती है। भारतीय गृहिणियों में रसोई प्रबंधन का उत्कृष्ट कौशल, नैसर्गिक एवं पारम्परिक रूप से विद्यमान है। भारत की रसोई, विश्वमंच पर प्रबंधन का उत्कृष्ट आदर्श एवं श्रेष्ठ उदाहरण है। भारतीय समाज में ऐसे असंख्य संदर्भ, परम्परा के रूप में प्रचलन में हैं। हमारे समाज में विद्यमान परम्परागत ज्ञान पर, गर्व के भाव के साथ अध्ययन, शोध एवं अनुसंधान करके दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है।

मंत्री श्री परमार ने कहा कि कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता एवं विरासत है। किसी के कार्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना, कृतज्ञता भाव रूपी भारतीय दर्शन का उत्कृष्ट उदाहरण है। श्री परमार ने कहा कि पेड़ों, जलस्रोतों सूर्य आदि प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों के पूजन एवं उपासना की पद्धति भारतीय समाज में परंपरागत रूप से विद्यमान है। यह परंपरा प्रकृति सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भाव है। हम सभी कृतज्ञतावादी है, न कि रूढ़िवादी; समाज में विद्यमान परम्पराओं के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को वैश्विक मंच पर युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में पुनः शोध एवं अनुसंधान के साथ, दस्तावेज से समृद्ध करने की आवश्यकता है। हमारे पूर्वज सूर्य उपासक थे, प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों की उपयोगिता और महत्व को जानते थे। श्री परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत, सौर ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भर होकर, अन्य देशों की पूर्ति करने में समर्थ देश बनेगा। साथ ही वर्ष 2047 तक खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म निर्भर होकर, अन्य देशों का भरण पोषण करने में भी सामर्थ्यवान देश बनेगा। हम सभी की सहभागिता से, अपने पूर्वजों के ज्ञान के आधार पर पुनः विश्वमंच पर सिरमौर राष्ट्र का पुनर्निर्माण होगा। इसके लिए हमें स्वाभिमान के साथ हर क्षेत्र में अपने परिश्रम और तप से आगे बढ़कर, विश्वमंच पर अपनी मातृभूमि का परचम लहराना होगा। अपनी गौरवशाली सभ्यता, भाषा, इतिहास और ज्ञान के आधार पर, हम सभी की सहभागिता से भारत पुनः “विश्वगुरु” बनेगा।

 

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