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Jhansi Medical College Fire Accident : जब 30 से 40 प्रतिशत चलेगा कमीशन का खेल,तो मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों में कैसे रुकेंगे हादसे?

झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 बच्चों की मौत ने यूपी की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। यह हम नहीं कह रहे हैं ये हादसे के बाद यूपी के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्यमंत्री ब्रजेश पाठक के बयानों में साफ नजर आ रहा है। मौके पर पहुंचे यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (UP Deputy CM Brajesh Pathak) ने कहा कि फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट (Fire Safety Audit) हुआ था। जून में एक मॉक ड्रिल भी किया गया था।

By टीम पर्दाफाश 
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लखनऊ। झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 बच्चों की मौत ने यूपी की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। यह हम नहीं कह रहे हैं ये हादसे के बाद यूपी के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्यमंत्री ब्रजेश पाठक के बयानों में साफ नजर आ रहा है। मौके पर पहुंचे यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (UP Deputy CM Brajesh Pathak) ने कहा कि फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट (Fire Safety Audit) हुआ था। जून में एक मॉक ड्रिल भी किया गया था। यह घटना कैसे हुई और क्यों हुई, इस बारे में जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा?

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30 से 40 प्रतिशत कमीशन बगैर किसी कंपनी को नहीं मिलता काम 

अब सवाल उठता है कि जब प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री ऐसा बयान दे रहा है। तो एक बात साफ नजर आ रहा है कि प्रदेश की स्थास्थ्य व्यवस्था को खुद इलाज की जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों का दावा है कि 30 से 40 प्रतिशत कमीशन बगैर किसी कंपनी को काम नहीं मिलता। यदि इतना कमीशन कोई एजेंसी दे देगी अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में घटिया उपकरण लगना लाजिमी है।

योगी सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लाख दावे कर ले ,लेकिन ये दावे सिर्फ कागजी आ रहे हैं नजर

यूपी योगी आदित्यनाथ सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लाख दावे कर ले लेकिन ये दावे सिर्फ कागजी ही नजर आ रहे हैं। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग में जारी भ्रष्टाचार पर अंकुश तो छोड़ दीजिए इस विभाग में भ्रष्टाचार और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी जमकर खेल किया जा रहा है। यही नहीं मुख्यमंत्री कार्यालय से आई फाइलों को भी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के यहां नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसमें सबसे ज्यादा खेल इनके चहेते अफसर और कुछ मठाधीश मिलकर कर रहे हैं।

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इसमें एक नाम मुकेश श्रीवास्तव का भी है, जो पूर्व विधायक है। मुकेश श्रीवास्तव के खिलाफ उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा भी दर्ज कर चुकी है। यही नहीं एनआरएचएम घोटाले में भी मुकेश श्रीवास्तव का नाम सामने आया था। बसपा शासनकाल से चल रहा स्वास्थ्य विभाग में इसका सिंडिकेट अभी भी जारी है। सूत्रों की मानें तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के ट्रांसफर पोस्टिंग में मुकेश श्रीवास्तव का सिक्का खूब चलता है। सीएमओ के ज्यादातर ट्रांसफर पोस्टिंग में इसके चहेते अफसरों को जिलों में तैनाती दी जाती है। इसके लिए मोटी रकम में डील भी की जाती है।

हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से ट्रांसफर-पोस्टिंग में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की तमाम कोशिशें और अधिकारियों को सख्त हिदायत दी गई है। इसके बाद भी स्वास्थ्य मंत्री के साथ मिलकर ये सभी खेल उनके चहेते कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो अगर मुख्यमंत्री की तरफ से मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की अभी तक की हुई ट्रांसफर पोस्टिंग की जांच हो जाए तो इनका खेल उजागर हो जाएगा। यही नहीं इनके इस कामों के कारण सरकार की भी छवि लगातार धूमिल हो रही है।

मुकेश श्रीवास्तव की कई कंपनियां काफी घटिया क्वालिटी के सामान की करती हैं सप्लाई

बताया जाता है कि, स्वास्थ्य विभाग का माफिया कहे जाने वाले मुकेश श्रीवास्तव की कई कंपनियां भी हैं। हालांकि, इनके आधा दर्जन से ज्यादा कंपनियों पर सरकार का हंटर चल चुके है और उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है। यही नहीं इसकी कई कंपनियों के खिलाफ एसआईटी जांच भी चल रही है। इसके बाद भी करीब 15 जिलों में मुकेश श्रीवास्तव स्वास्थ्य मंत्री से सांठगांठ करके अपने सीएमओ की तैनाती कराई है। सीएमओ की तैनाती के बाद मुकेश अपनी कंपनियों का काम इन जिलों में धड़ल्ले से चल रहा है। सूत्रों की मानें तो इन कंपनियों में काफी घटिया क्वालिटी के सामान की सप्लाई की जाती है।

भाजपा विधायकों की नहीं होती सुनवाई

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सूत्र बतातें हैं कि, भाजपा के विधायकों की स्वास्थ्य मंत्री के यहां कोई सुनवाई नहीं होती है। कई भाजपा विधायक मुख्यमंत्री के यहां अपने क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की दुर्दशा को लेकर पत्र लिखते हैं तो स्वास्थ्य मंत्री की तरफ से उसको सिरे से खारिज कर दिया जाता है। यही नहीं विधायकों पर पत्र वापस लेने का दबाव भी बनाया जाता है या फिर उनके पत्र को फर्जी बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। जबकि विपक्षी दल के पूर्व विधायक मुकेश श्रीवास्तव जैसे लोगों की विभाग में तूती बोलती है। ऐसे में अब देखना है कि इस सिंडिकेट के खिलाफ मुख्यमंत्री कोई कार्रवाई करते हैं या फिर स्वास्थ्य मंत्री विभाग में अपना खेल अनवरत जारी रखते हैं।

आग लगने के बाद न फायर अलार्म बजा न ही वार्ड में रखे सिलेंडर थे किसी काम के

एक प्रमुख न्यूज चैनल ने झांसी अग्निकांड पर बड़ा खुलासा (Big Disclosure) किया है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज (Medical College) में लगे फायर एक्सटिंग्विशर  (Fire Extinguishers ) 2023 में ही फायर एक्सपायर हो चुके हैं। इसके अलावा कई फायर एक्सटिंग्विशर तो 2019 से ही खराब पड़े हैं। बता दें कि आग से बचाव के फायर एक्सटिंग्विशर (Fire Extinguishers) लिए लगाया जाता है। इस घटना ने साफ कर दिया है सिर्फ खानापूर्ति के लिए मेडिकल कॉलेज (Medical College) में फायर सिलेंडर (Fire Cylinder) लगे थे। हैरानी की बात ये रही कि आग लगने के बाद न फायर अलार्म बजा न ही वार्ड में रखे सिलेंडर किसी काम के थे।

वर्ल्ड क्लास इलाज का दावा, स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से बुझ गए10 घरों के चिराग

झांसी मेडिकल कॉलेज (Jhansi Medical College) में 10 शिशुओं की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस मेडिकल कॉलेज में शिशुओं को वर्ल्ड क्लास इलाज देने का दावे पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। इसी साल जनवरी में एक न्यूज चैनल के तरफ से प्रकाशित रिपोर्ट में लिखा था कि नवजात गहन देखभाल इकाई (NICU) झांसी मेडिकल कॉलेज में गंभीर चिकित्सा समस्याओं से पीड़ित शिशुओं को सर्वोत्तम उपचार मिलेगा। इस वार्ड को 70 लाख से अधिक की लागत से आधुनिक सुविधाओं एवं उपकरणों से सुसज्जित किया गया है।

एनआईसीयू वार्ड के नोडल अधिकारी एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅ. ओम शंकर चौरसिया ने कहा था कि नये एनआईसीयू वार्ड के निर्माण के बाद बीमार बच्चों को एक ही स्थान पर आधुनिक चिकित्सा मशीनों से इलाज के साथ ही बच्चों और माताओं को एक साथ रखने की भी व्यवस्था की गई है। चौरसिया ने कहा कि वहां इन्फ्यूजन पंप, मल्टीपैरा पेशेंट मॉनिटर, वेंटिलेटर, ऑटो सी-पैप, एलईडी फोटो थेरेपी, अल्ट्रासाउंड, इको आदि जैसी सभी सुविधाएं होंगी। लेकिन हादसे ने सारे दावों की पोल खोलकर रख दी।

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“वर्ल्ड क्लास” सुविधा के नाम जनता को मूर्ख बनाने की परंपरा कब तक चलेगी?

झांसी के मेडिकल कॉलेज में 51 बेड का “नया NICU वार्ड” बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही थीं। वर्ल्ड क्लास सुविधाएं देने के नाम पर एक और दिखावटी ढांचा तैयार किया। सरकार की अधिकतर “अधूरी परियोजनाएं” सिर्फ कागजों में ही पूरी हो जाती हैं। कंगारू मदर केयर रूम जैसी “हाई-फाई” सुविधाओं के नाम पर माता-पिता से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने नवजात शिशु को बेहतर इलाज के भ्रम में यहां लाएं। अक्सर देखा गया है कि NICU जैसे संवेदनशील स्थानों पर, बिना प्रशिक्षित स्टाफ और रख-रखाव के, सारी सुविधाएं महज दिखावा साबित होती हैं। असली सवाल यह है कि क्या सरकार इन वार्ड्स के लिए स्थायी समाधान और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी? आशा है कि इस बार दिखावा नहीं, बल्कि असली बदलाव देखने को मिलेगा। वरना, झूठे प्रचारों और अधूरे वादों के इस जाल में सिर्फ नवजात शिशु और उनके माता-पिता ही फंसते रहेंगे।

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