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नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने कहा- सुप्रीम कोर्ट नहीं पलट सकता है उनका फैसला

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रतिनिधिसभा को संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही भंग किया गया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट उनके फैसले को न तो पलट सकता है और न ही इसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है।

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रतिनिधिसभा को संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही भंग किया गया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट उनके फैसले को न तो पलट सकता है और न ही इसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है।

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राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया। इसके साथ ही, 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की। प्रधानमंत्री ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।

‘काठमांडू पोस्ट’ की खबर के मुताबिक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष अग्नि सपकोटा ने सरकार के 21 मई के फैसले के बारे में शीर्ष अदालत में अपने-अपने स्पष्टीकरण लिखित में पेश किए हैं। कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नौ जून को उनसे लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा था।

इसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने जहां अपने फैसलों का बचाव किया है वहीं प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष ने इसे असंवैधानिक कदम बताया है। राष्ट्रपति कार्यालय ‘शीतल निवास’ के तरफ से कहा गया है कि राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। अटॉर्नी जनरल कार्यालय की ओर से कोर्ट को उपलब्ध करवाए गए स्पष्टीकरण में राष्ट्रपति ने कहा है, ‘संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत राष्ट्रपति का कोई भी कदम याचिका का विषय नहीं बन सकता है। न ही यह न्यायिक समीक्षा का मुद्दा भी बन सकता है।

भंडारी ने ‘राष्ट्रपति एवं उप राष्ट्रपति को पारितोषिक एवं लाभ अधिनियम 2017’ के अनुच्छेद 16 का जिक्र किया, जो कहता है कि राष्ट्रपति के किसी भी कदम को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। राष्ट्रपति ने कहा कि ‘अत: राष्ट्रपति द्वारा बिना किसी की सिफारिश के संविधान के आधार पर लिए गए किसी भी निर्णय पर अदालत कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। ’

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वहीं, ओली ने कहा कि सरकार का गठन एक राजनीतिक प्रक्रिया और इस बारे में अदालत फैसला नहीं ले सकती है। प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की याचिका सहित 30 रिट याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि प्रतिनिधि सभा को भंग किया जाना ‘असंवैधानिक’ है।

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