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Pitru Paksha 2024 : जानें इस साल कब है पितृ पक्ष? तर्पण करने से पितरों की आत्मा आत्मा को शांति मिलती है

सनातन धर्म में पूर्वजों  की आत्मा के शान्ति के लिए पितृ पक्ष में पिंडदान, तर्पण करने की परंपरा है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और इस दौरान उनका नियमित श्राद्ध (Shraahd) करने से, तर्पण करने से और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Pitru Paksha 2024 : सनातन धर्म में पूर्वजों  की आत्मा के शान्ति के लिए पितृ पक्ष में पिंडदान, तर्पण करने की परंपरा है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और इस दौरान उनका नियमित श्राद्ध (Shraahd) करने से, तर्पण करने से और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।   पितृपक्ष के बाद में वंशजों को आशीर्वाद देकर पूर्वज अपने लोक को चले जाते हैं। ह भी मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों का ऋण भी चुकता होता है।

पढ़ें :- Sarvapitri Amavasya 2024 : सर्वपितृ अमावस्या पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है , जानें श्राद्ध कब और कैसे करें

पितृपक्ष की शुरुआत हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा से अमावस्या तक होती है, जो इस बार 17 सितंबर 2024 से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2024 तक रहेगा, इनमें कुल 16 तिथियां पड़ेगी जो इस प्रकार है-

17 सितंबर 2024, मंगलवार- पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर 2024, बुधवार- प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर 2024, गुरुवार- द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर 2024, शुक्रवार- तृतीया का श्राद्ध-
21 सितंबर 2024, शनिवार- चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर 2024, शनिवार- महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर 2014, रविवार- पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर 2024, मंगलवार- अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर 2024, बुधवार- नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर 2024, गुरुवार- दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर 2024, शुक्रवार- एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- माघ श्रद्धा
30 सितंबर 2024, सोमवार- त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2024, मंगलवार- चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर 2024, बुधवार- सर्वपितृ अमावस्या

पितरों की आत्मा तृप्त होती है
पौराणिक शास्त्रों में तिल को देवान्न यानी देवताओं का अन्न कहा गया है। और जल को मुक्ति के साधन के समान बताया गया है। इसके अतिरिक्त और भी मान्यताएं है कि काली तिल का एक दाना दान करने की दृष्टि से बत्तीस सेर स्वर्ण तिलों के बराबर होता है। इसलिए पानी के साथ तिल अर्पित करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है।

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