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मानवता के साथ खिलवाड़: धारावी के लाखों परिवार लैंडफिल में कैसे बिताएंगे जीवन? प्रगयाराज में भी Ecostan कंपनी ने लोगों के जीवन को संकट में डाला

देश के दो बड़े शहरों में सामने आई घटनाएं न केवल प्रशासनिक विफलताओं को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि किस प्रकार विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन के नाम पर आम आदमी की ज़िंदगी और शहरों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। विपक्षी पार्टियां भी इसको लेकर सवाल उठा रही है। कांग्रेस ने इसको लेकर सरकार पर बड़ा हमला बोला है।

By टीम पर्दाफाश 
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मुंबई/प्रयागराज। देश के दो बड़े शहरों में सामने आई घटनाएं न केवल प्रशासनिक विफलताओं को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि किस प्रकार विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन के नाम पर आम आदमी की ज़िंदगी और शहरों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। विपक्षी पार्टियां भी इसको लेकर सवाल उठा रही है। कांग्रेस ने इसको लेकर सरकार पर बड़ा हमला बोला है।

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धारावी में लैंडफिल के पास जीवन और स्वास्थ्य संकट
मुंबई के धारावी में पुनर्विकास योजना के तहत करीब 50,000 लोगों को देवेनार लैंडफिल के पास अस्थायी शिविरों में बसाने की तैयारी है। यह क्षेत्र न केवल विषैली गैसों का उत्सर्जन करता है, बल्कि यहां स्वास्थ्य और स्वच्छता के मानकों की भी पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। ऐसी स्थिति में ये लोग कचरे के ढेर के पास एक दम घोंटते जीवन जीने को मजबूर हो जाएंगे, और वहां की स्थिति इतनी विकट है कि यह भविष्य में बड़े पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकती है।

प्रयागराज में कचरे का घोटाला और पर्यावरणीय संकट
वहीं, प्रयागराज में ईकोस्टैन नामक निजी कंपनी पर आरोप लगा है कि उसने करीब 3 लाख टन कूड़े की प्रोसेसिंग के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला किया। कंपनी ने कचरे को प्रोसेस करने की बजाय उसे शहर के गड्ढों और जलाशयों में दबा दिया, जिससे 6,000 टन मीथेन गैस का रिसाव हुआ, जो 80 किलोटन TNT के बराबर ऊर्जा उत्पन्न कर सकती थी। अगर सही तरीके से प्रोसेसिंग की जाती, तो इससे 46,000 MWh बिजली उत्पन्न हो सकती थी, जो धारावी जैसे क्षेत्रों की रोशनी बढ़ा सकती थी।

समाज और प्रशासन की दोहरी नीति
यह दोनों घटनाएं प्रशासन की दोहरी नीति और भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं। जहां एक तरफ मुंबई में 50,000 लोग कचरे के ढेर के पास दम घोंटते जीवन जीने के लिए मजबूर ​करने की तैयारी है। वहीं, दूसरी तरफ प्रयागराज में कचरे की प्रोसेसिंग के नाम पर ईकोस्टैन और नगर निगम अधिकारियों ने करोड़ों रुपये की हेराफेरी की।

प्रयागराज में घोटाले में शामिल अधिकारी
प्रयागराज में कचरे के घोटाले में कई अधिकारियों के नाम सामने आए हैं। इन अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने 10 से 12 करोड़ रुपये के भुगतान में 50-50 की बंदरबांट किया है। इन भ्रष्टाचारियों के कारण न केवल सरकारी धन की बर्बादी हुई, बल्कि पर्यावरणीय संकट भी पैदा हुआ।

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खड़े हुए गंभीर सवाल
इन दोनों घटनाओं ने सरकारों की प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह “स्वच्छ भारत” है या केवल एक “दिखावटी भारत”? क्या शहरों के विकास की कीमत गरीब और कमजोर तबकों को चुकानी होगी? क्या हम एक ऐसी व्यवस्था में जी रहे हैं, जहां इंसान का जीवन कचरे से भी सस्ता हो गया है? यह समय है जब प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इन समस्याओं का समाधान ढूंढने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। जनहित, पारदर्शिता, और कड़ी जांच की आवश्यकता है ताकि ऐसे घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले फिर से न हों।

आम जनता क्यों चुकाए इसकी कीमत
एक तरफ प्रयागराज में करोड़ों रुपए की वेस्ट प्रोसेसिंग के नाम पर लूट होती है और कचरे को बिना प्रोसेसिंग के ज़मीन में दबा दिया जाता है। दूसरी ओर, देश की आर्थिक राजधानी में हजारों गरीब परिवारों को उसी ज़हरीली ज़मीन के किनारे बसाया जाता है — जिसे साफ करने के लिए करोड़ों खर्च होने चाहिए थे। प्रयागराज में घोटालेबाज़ों पर कार्रवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है और मुंबई में पुनर्वास का विकल्प तक नहीं दिया गया। यह स्पष्ट करता है कि भारत का कचरा प्रबंधन केवल डेटा और टेंडरों तक सीमित रह गया है—ज़मीन पर सिर्फ गंदगी, विस्थापन और अन्याय फैला है। अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें इन मामलों की स्वतंत्र जांच कराएं, और वेस्ट मैनेजमेंट को “कचरा कारोबार” से निकालकर जनहित और पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा बनाएं।

कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा
कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि, नरेंद्र मोदी के सबसे खास दोस्त अडानी मुंबई के धारावी को उजाड़ रहे हैं। अडानी को धारावी में अपनी दुनिया बसानी है, जहां अमीरों के लिए सारी सुविधाएं हों। इसके लिए करीब 1 लाख गरीब भारतीय लोगों को धारावी से हटाकर, मुंबई के सबसे बड़े कचरे के ढेर पर शिफ्ट किया जाएगा। ये कचरे का ढेर हर घंटे करीब 6202 किलोग्राम मीथेन गैस उत्सर्जित करता है, जिससे हवा बेहद जहरीली है। साथ ही इससे निकलने वाला जहर वहां के पानी में भी घुला हुआ है।

उन्होंने आगे कहा, ऐसे में जिन 1 लाख गरीब भारतीयों को वहां शिफ्ट किया जाएगा, उनकी सेहत पर इसका खराब असर होगा। लेकिन… मोदी सरकार को क्या फर्क पड़ता है. उसे तो सिर्फ अमीरों की मौज से मतलब है। गरीब मरे तो मरे। नरेंद्र मोदी और अडानी भारत को ‘दो भारत’ में बदल रहे हैं। एक भारत जो उनके चहेते अमीरों का है, जिनके लिए हर सुख सुविधाएं हैं। दूसरा भारत जहां गरीब की जिंदगी की कोई कीमत नहीं, उसका शोषण किया जा रहा है।

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