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Raja Mahendra Pratap Singh jeevan parichay: देश के पराक्रमी जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह की पढ़ें जीवन गाथा

Raja Mahendra Pratap Singh jeevan parichay: इतिहास के पन्नों में दबी जिनकी स्मृति को पूरा देश भूल गया था। देश के पराक्रमी जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh ) के नाम पर यूनिवर्सिटी की स्थापना का ऐलान कर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने चर्चा के केंद्र में ला दिया है। बता दें कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 14 सितंबर को इसका शिलान्यास करने जा रहे हैं। ये वही राजा थे जिन्होंने अफगानिस्तान (Afghanistan) में साल 1915 में भारत की पहली अंतरिम सरकार (India's first interim government) बनाई थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) उस राजा का योगदान  भुला दिया था, जबकि उन्हीं की दान की हुई जमीन पर ये यूनिवर्सिटी खड़ी है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

Raja Mahendra Pratap Singh jeevan parichay: इतिहास के पन्नों में दबी जिनकी स्मृति को पूरा देश भूल गया था। देश के पराक्रमी जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh ) के नाम पर यूनिवर्सिटी की स्थापना का ऐलान कर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने चर्चा के केंद्र में ला दिया है। बता दें कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 14 सितंबर को इसका शिलान्यास करने जा रहे हैं। ये वही राजा थे जिन्होंने अफगानिस्तान (Afghanistan) में साल 1915 में भारत की पहली अंतरिम सरकार (India’s first interim government) बनाई थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) उस राजा का योगदान  भुला दिया था, जबकि उन्हीं की दान की हुई जमीन पर ये यूनिवर्सिटी खड़ी है।

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मुरसान रियासत के शासक के जाट परिवार में राजा  महेन्द्र प्रताप का एक दिसम्बर 1886 को  हुआ था जन्म

महेन्द्र प्रताप का जन्म एक दिसम्बर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था जो मुरसान रियासत के शासक थे। यह रियासत वर्तमान उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में थी। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे, जब वह तीन साल के थे तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया था। साल 1902 में उनका विवाह बलवीर कौर से हुआ था जो जिन्द रियासत के सिद्धू जाट परिवार की थीं। विवाह के समय वे कॉलेज की शिक्षा ले रहे थे।

राजा महेंद्र सिंह के बारे में बताया जाता है कि मैसर्स थॉमस कुक एंड संस के मालिक बिना पासपोर्ट के अपनी कम्पनी के पी एंड ओ स्टीमर द्वारा राजा महेन्द्र प्रताप और स्वामी श्रद्धानंद के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद्र को इंग्लैंड ले गए। उसके बाद जर्मनी के शासक कैसर से उन्होंने भेंट की। वहां से वह अफगानिस्तान गए। फिर बुडापेस्ट, बुल्गारिया, टर्की होकर हेरात पहुंचे जहां अफगान के बादशाह से मुलाकात की । वहीं से 1 दिसम्बर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की जिसके राष्ट्रपति स्वयं व प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला खां बने।

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जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह का 26 अप्रैल 1979 में हुआ था देहांत

यहां स्वर्ण-पट्टी पर लिखा सूचनापत्र रूस भेजा गया। उसी दौर में अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया तभी वे रूस गए और लेनिन से मिले, लेकिन लेनिन ने कोई सहायता नहीं की। साल 1920 से 1946 विदेशों में भ्रमण करते हुए विश्व मैत्री संघ की स्थापना की। फिर 1946 में भारत लौटे। यहां सरदार पटेल की बेटी मणिबेन उनको लेने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं। इसके बाद वह संसद-सदस्य भी रहे। जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह का 26 अप्रैल 1979 में उनका देहांत हो गया था।

अफगानिस्तान में जाकर 1 दिसम्बर 1915 में भारत की पहली अंतरिम सरकार बनाई

जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने जीवन में बहुत सारे सामाजिक काम किए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किए हैं। उन्होंने शिक्षा के लिए अपना पैतृक निवास भी दान कर दिया था। वही स्थान एशिया का पहला पॉलिटेक्निक 1909 में बना। तो ऐसे व्यक्ति को पहचान दिलाना जिसने अफगानिस्तान में जाकर 1915 में भारत की पहली अंतरिम सरकार बनाई। जिसे 25 देशों ने अपनी मान्यता भी दी थी।

अटल बिहारी वाजपेयी को चुनावों में पटखनी दे चुके थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह

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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 सितंबर को जिस जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटी की नींव डालने जा रहे हैं। यह वही जाट राजा थे जिन्होंने 1957 के चुनावों में देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee) को हरा चुके के। बता दें कि मथुरा सीट से वाजपेयी जनसंघ के प्रत्याशी थे तो राजा महेंद्र निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनावों में जनसंघ को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।

 

देश के आन-बान शान की रक्षा के लिए दर्जनों प्राचीन जाट शासकों ने मुगल काल से लेकर अंग्रेजी शासकों से डंटकर मुकाबला करते हुए जाटों ने सदियों तक लोहा लिया है। पढ़ें उनकी उपलब्धियां।

1. राजा हेमु जाट का जन्म 1501 में ग्राम देओति तहसील राजगढ़ जिला अलवर राजस्थान में पपरन्पाला जाट जमीदार के घर में हुआ था । 1556 दूसरा युद्ध अकबर और हेमू जाट के बीच में हुआ था जो कि एक घमासान युद्ध था एक तरफ जाट सेना तो दूसरी तरफ मुगल सेना थी याद रहे इससे पहले 1526 में भी गद्दार राणा सांगा को जाटों ने बाबर के खिलाफ मदद दी थी।

2. महाराज वीर जुझार सिंह का जन्म 1672 में हुआ था । राजस्थान के जिला झुंझुनू में राजपूत और जाटों ने मिलकर जुझार सिंह नेहरा के नेतृत्व में राजस्थानी नबाबों को मारा और नेहराबाटी पर राज किया परंतु तिलक करने वाले दिन सामंतवादी ताकतो ने धोखा देकर विश्वासघात द्वारा उन्हें मार डाला। और जाटों की नेहरा वाटी को शेखावटी में तब्दील कर शेखावत राजपूतों ने गद्दारी से अपना राज्य कायम किया राजा जुझार सिंह नेहरा की शार्दुल ठाकुर ने धोखे से मौत के घाट उतरवाया।

3. भीम सिंह राणा का जन्म सन 1691 में हुआ। महाराजा भीम सिंह राणा नेम गवालियर से लाहौर तक जीतकर जाटों को एक सूत्र में बांधने की कोशिश की थी परंतु दुर्भाग्य से उनकी धोखे से 1756 मौत होने से जाट साम्राज्य दोबारा हर्षवर्धन अशोक की तरह दोबारा ना हो सका।

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4. महाराजा सूरज मल जाट का जन्म सन 1707 को राजा बदनसिंह के यहां हुआ था। सन 1753 में दिल्ली विजय कि अब दो महीने वही रहे प्रसिद्ध प्रतिमान होने के कारण जाटों का प्लेटो के नाम से इतिहास में जाने जाते हैं पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों के हारने एवं महाराजा ने उदारतापूर्वक उन्हें पनाह दी थी आगरा और दिल्ली दोनों लाल किले जीतने वाले मुगलों से पहले भारतीय शासक थे।

5. महाराजा उदय भान सिंह जी राना का जन्म सन 1901 महाराजा निहाल सिंह राणा धौलपुर रियासत संतान एक पुत्री समस्त हिंदू राजाओं में आपके उच्च आदर्शों के कारण सन 1932 में बिरला मंदिर दिल्ली की नीव आप के पवित्र हाथों से रखवाए गई।

दिल्ली के बिरला मंदिर का शिलान्यास- इस मंदिर की स्थापना सन 1932 में हुई थी तथा इसकी स्थापना में सारे राज्य महाराज जी जैसे राजपूत मराठए जाट बुलाए गए । इसकी सभा की अध्यक्षता हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने की थी । स्टेज का संचालन पंडित मदन मोहन मालवीय ने किया था। वह कुलपति ने यह 5 शर्त रखी थी कि जो राजा महाराजा इन 5 शर्तो को पूरी करता है। वह इस मंदिर  का शिलान्यास करेगा । यदि पूरे भारत वर्ष का एक भी राजा महाराजा इन पांच शर्तों को पूरा नहीं करता । तो इस मंदिर का शिलान्यास नहीं होगा।  मालवीय  मैं आपको इस कार्य के लिए 2 घंटे का समय देता हूं आप चाहिए ऐसा कौन सा राज्य है । राजा है वह शर्तें इस प्रकार थी।

1 जिस के दरबार में वेश्याओं का नाच न होता हो।
2 जिसका वंश उच्च कोटि का हो व चरित्र आदर्श हो।
3 जो शराब तथा मांस का प्रयोग न करता हो।
4 जिसने एक से अधिक विवाह न किया हो।
5 जिसके वंश में मुगलों का अपनी बहन बेटियों के डोले न दिए हो।

यह सुन कर सब जगह सन्नाटा छा गया तथा सभी बड़े बड़े राजाओ महाराजाओं के चेहरे नीचे झुक गए बड़ी मशक्कत वह मुश्किल से पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने एक राज्य का चुनाव किया था वह राजा कोई और नहीं धौलपुर का जाट नरेश उदयभानु राणा को चुना गया यही अकेला 5 शर्त पूरी करता था।

6.  राजा नहार सिंह जाट का जन्म 8 अप्रैल 1821 और शहीदी 9 जनवरी 1858 ,पिता का नाम राजा राम सिंह, गोत्र तेवतिया ,राजधानी बल्लबगढ़। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर जो इनकी वीरता पर सबसे अधिक विश्वास करते थे मैं 18 57 की क्रांति के समय दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली की रक्षा करने की जिम्मेवारी इन को सौंपी थी तथा अंग्रेज जनरलों के असफल रहने पर संदीप करने का झूठा आश्वासन देकर धोखे से गिरफ्तार कर लिया तथा तीन कमांडरों और भूरा सिंह चौधरी खुशाल सिंह चौधरी गुलाब सिंह सैनी के साथ फ़ुवारा चौक चांदनी चौक दिल्ली में फांसी पर लटका दिया गया था।

7. महाराजा जवाहर सिंह का जन्म सन 1733 महाराजा सूरजमल जी गोत्र सिनसिनवार पोशाक माता किशोरी जी असल माता चौहान राजपूतनी। माता किशोरी जी के रोश भरे उड़ाने पर पिता की मृत्यु का बदला लेने हेतु दिल्ली पर चढ़ाई की लाल किले में अष्ट धातु का दरवाजा लाइव युद्ध में महाराजा साहब को आनंद आता था तथा सोड़ा राजपूत राजा पुष्कर से वापस भरतपुर आते हुए जाट सेना पर धोखे से हमला किया करने पर मार गिराए और जाटों को राजपूत और मुगल दोनों पर जीत दिलवाई जाट समाज को आप पर हमेशा अभिमान और गर्व रहेगा। 1765 मे मुगलों के फोज हार महाराजा जवाहर सिंह जी की ही देन थी।

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8. महाराजा रणजीत सिंह सिनसिनवार– महाराजा सूरजमल के सबसे छोटे बेटे और महाराजा जवाहर सिंह के छोटे भाई महाराजा संवाद चीन के नेतृत्व में जाट सेना ने भरतपुर में 1805 में लगातार अंग्रेजों के 13 बार हुए हमले को नाकाम कर अंग्रेजों को एशिया में पहली हार का मजा चखाया था। 1805 में ही भारत में पहली बार अंग्रेजो ने बराबरी की ट्रीटी संधि जाटों से की थी।

9. महाराजा रंजीत सिंह संधिवालिया लहौरिया का जन्म सन 1780 राजा महा सिंह के यहां हुआ था। यह रियासत गुजरावाला जिला गांव संसी पूर्व पंजाब इतिहास में शेर ए पंजाब और नेपोलियन के नाम से प्रसिद्ध आप के ताज मे कोहिनूर हीरा सजा रहता था। आप की सेनाएं एक तरफ खैबर पख्तून तक पहुंच गई थी तथा दूसरी तरफ हिमाचल क्रॉस कर तिब्बत तब तक पहुंच गई थी एक तरफ कश्मीर से लेकर नीचे लाहौर और आधा पाकिस्तान आप के कब्जे में था इटली से 4 गुना बड़ा राज्य था।

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