देश में बढ़ता वायु प्रदूषण (Air Pollution) बारिश के पानी को अम्लीय (Acid) बनाता जा रहा है। जो पर्यावरण के लिए एक गंभीर मुद्दा है। यह मुख्य रूप से औद्योगिक गतिविधियों, वाहन उत्सर्जन और बिजली संयंत्रों से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) जैसे प्रदूषकों के कारण होती है।
नई दिल्ली। देश में बढ़ता वायु प्रदूषण (Air Pollution) बारिश के पानी को अम्लीय (Acid) बनाता जा रहा है। जो पर्यावरण के लिए एक गंभीर मुद्दा है। यह मुख्य रूप से औद्योगिक गतिविधियों, वाहन उत्सर्जन और बिजली संयंत्रों से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) जैसे प्रदूषकों के कारण होती है। ये गैसें वायुमंडल में जल वाष्प के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं, जिससे वर्षा का pH मान कम हो जाता है।
हाल ही में भारत मौसम विभाग (IMD) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के एक अध्ययन में यह सामने आया है। दोनों संस्थानों ने 34 साल के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि देश के कई हिस्सों में वर्षा जल तेजी से अम्लीय हो रहा है। यह स्थिति विशाखापत्तनम (आंध्रप्रदेश), प्रयागराज (यूपी) और मोदनबाड़ी (असम) जैसे शहरों में ज्यादा चिंताजनक है। अगर समय रहते प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इसके दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं।
1987 से 2021 के बीच 10 स्थानों का गहन अध्ययन
1987 से 2021 के बीच देश के 10 ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच स्टेशनों (श्रीनगर, जोधपुर, प्रयागराज, मोहनबाड़ी, पुणे, नागपुर, विशाखापत्तनम, कोडाईकनाल, मिनिकॉय और पोर्ट ब्लेयर) पर यह अध्ययन किया गया। इन जगहों पर बारिश के पानी में रसायनों की मात्रा और पीएच स्तर की निगरानी की गई।
क्या है अम्लीय वर्षा?
वर्षा जल का सामान्य पीएच (pH) स्तर लगभग 5.6 होता है। बारिश का पानी वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के कारण स्वाभाविक रूप से थोड़ा अम्लीय होता है। लेकिन, जब यह स्तर 5.65 से नीचे चला जाए, तो इसे ‘अम्लीय वर्षा’ माना जाता है। अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन दशकों में कई शहरों में वर्षा जल का पीएच लगातार गिरता जा रहा है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
प्रयागराज में बारिश के दौरान पीएच में हर दशक 0.74 यूनिट की गिरावट दर्ज की गई। पुणे में हर दशक 0.15 यूनिट घटा है।
विशाखापत्तनम की अम्लीयता के पीछे तेल रिफाइनरी, उर्वरक संयंत्र और शिपिंग यार्ड से निकलने वाले प्रदूषक माने जा रहे हैं।
जोधपुर और श्रीनगर जैसे स्थानों पर आसपास के रेगिस्तानी क्षेत्रों से आने वाली धूल अम्लीय तत्वों को बेअसर करने में सहायक है।
जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण
शोध में यह भी सामने आया कि वाहनों, उद्योगों और कृषि गतिविधियों से निकलने वाले नाइट्रेट और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक अम्लीय वर्षा के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, प्राकृतिक न्यूट्रलाइज़र जैसे कैल्शियम कणों की मात्रा में गिरावट और अमोनियम की सीमित वृद्धि संतुलन बनाए रखने में असमर्थ रही है।
खाद्य श्रृंखला पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान पीएच स्तर अभी अत्यधिक खतरनाक नहीं हैं, लेकिन यदि यही रुझान जारी रहा, तो यह अम्लीय वर्षा ऐतिहासिक स्मारकों, इमारतों, कृषि भूमि और जल स्रोतों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। अम्लीय जल भारी धातुओं को मिट्टी से निकालकर भूगर्भीय जल तंत्र में पहुंचा सकता है, जिससे यह खाद्य श्रृंखला और मानव स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।
प्रभाव:
मिट्टी और जलाशयों की गुणवत्ता बिगड़ती है।
वनस्पतियों और जलीय जीवों को नुकसान।
इमारतों और स्मारकों का क्षरण।
समाधान:
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग।
प्रदूषण नियंत्रण नियमों का कड़ाई से पालन।
वृक्षारोपण और जागरूकता।
वायु प्रदूषण के प्रभाव व्यापक और गंभीर हैं, जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संक्षेप में:
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
श्वसन रोग: PM2.5, धूल, और धुएं से अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस, और फेफड़ों का कैंसर।
हृदय रोग: प्रदूषक रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर दिल के दौरे का जोखिम बढ़ाते हैं।
एलर्जी और संक्रमण: ओजोन और NO₂ से आंखों में जलन, त्वचा रोग, और कमजोर प्रतिरक्षा।
न्यूरोलॉजिकल प्रभाव: लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से बच्चों में मस्तिष्क विकास पर असर।
पर्यावरण पर प्रभाव:
अम्लीय वर्षा: SO₂ और NOₓ से मिट्टी, जल, और वनस्पतियों को नुकसान।
जलवायु परिवर्तन: CO₂, मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र: ओजोन से पेड़-पौधों की वृद्धि रुकती है; जलीय जीव प्रभावित।
धुंध (Smog): दृश्यता कम होना और सूर्य प्रकाश में कमी।
आर्थिक प्रभाव:
स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ता खर्च।
कृषि उत्पादन में कमी।
पर्यटन और श्रम उत्पादकता पर नकारात्मक असर।
सामाजिक प्रभाव:
जीवन की गुणवत्ता में कमी।
वायु प्रदूषण के कारण असमान प्रभाव, खासकर गरीब समुदायों पर।
नियंत्रण के उपाय
स्वच्छ ऊर्जा (सौर, पवन) को बढ़ावा।
वाहन उत्सर्जन मानकों को कड़ा करना।
औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण।
जागरूकता और वृक्षारोपण।
अम्लीय वर्षा का निर्माण
प्रदूषकों का उत्सर्जन:
SO₂ कोयला जलाने और धातु गलाने से निकलता है।
NOₓ वाहनों और बिजली संयंत्रों से उत्पन्न होता है।
रासायनिक प्रतिक्रिया:
ये गैसें वायुमंडल में जल वाष्प, ऑक्सीजन और अन्य रसायनों के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल (H₂SO₄) और नाइट्रिक अम्ल (HNO₃) बनाती हैं।
ये अम्ल बादल में घुल जाते हैं और वर्षा, बर्फ, ओस या कोहरे के रूप में धरती पर गिरते हैं।
सूखा अवक्षेपण:
अम्लीय कण सूखे रूप में भी जमीन पर जमा हो सकते हैं, जो बाद में नमी के संपर्क में आने पर अम्लीय प्रभाव डालते हैं।
अम्लीय वर्षा के पर्यावरण पर प्रभाव:
मिट्टी: अम्लीय वर्षा मिट्टी के पोषक तत्वों (जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम) को धो देती है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।
जलाशय: झीलों और नदियों का pH कम होने से जलीय जीव, विशेष रूप से मछलियां और उभयचर, मर सकते हैं। यह खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करता है।
वन: पेड़ों की जड़ें क्षतिग्रस्त होती हैं, और पत्तियां झुलस सकती हैं। स्कैंडिनेविया और उत्तरी अमेरिका के जंगल इसके उदाहरण हैं।
जैव विविधता: अम्लीय वर्षा पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ाती है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
अम्लीय वर्षा सीधे स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करती, लेकिन इसके कारण वायु में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5) और जहरीले धातु (जैसे पारा) श्वसन और हृदय रोगों को बढ़ा सकते हैं।
दूषित जल पीने से स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
मानव निर्मित संरचनाओं पर प्रभाव:
ऐतिहासिक स्मारक, जैसे ताजमहल, अम्लीय वर्षा से क्षरण का शिकार होते हैं, क्योंकि अम्ल चूना पत्थर और संगमरमर को घोल देता है।
धातु संरचनाएं, जैसे पुल और रेलवे, जंग से प्रभावित होती हैं।
आर्थिक प्रभाव:
कृषि और मछली पालन में कमी।
इमारतों और बुनियादी ढांचे की मरम्मत पर खर्च।
पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक असर, खासकर प्राकृतिक स्थलों पर।
भारत में स्थिति
भारत में अम्लीय वर्षा का प्रभाव दिल्ली, मुंबई, और औद्योगिक क्षेत्रों जैसे कोरबा और सिंगरौली में देखा गया है।
ताजमहल का क्षरण इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसके लिए मथुरा रिफाइनरी के उत्सर्जन को जिम्मेदार माना गया।
कोयला आधारित बिजली संयंत्र और बढ़ता वाहन प्रदूषण इस समस्या को बढ़ा रहे हैं।
नियंत्रण और समाधान उत्सर्जन में कमी:
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन, हाइड्रो) को बढ़ावा देना।
कोयला संयंत्रों में स्क्रबर्स और डी-सल्फराइजेशन तकनीक का उपयोग।
वाहनों में कैटेलिटिक कनवर्टर और कम सल्फर वाले ईंधन का इस्तेमाल।
नीतियां और नियम:
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कड़े मानक लागू करना।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को मजबूत करना।
अंतरराष्ट्रीय समझौते, जैसे ग्लोबल सल्फर प्रोटोकॉल, का पालन।
पर्यावरणीय उपाय:
चूना पत्थर (Liming) का उपयोग कर झीलों और मिट्टी के pH को संतुलित करना।
बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण, क्योंकि पेड़ CO₂ और प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं।
जागरूकता:
स्कूलों और समुदायों में अम्लीय वर्षा के प्रभावों पर शिक्षा।
व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा संरक्षण और कम प्रदूषण वाले विकल्प चुनना।