Bill to remove Prime Minister and Chief Minister: प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की बर्खास्तगी से जुड़े बिल को लेकर सियासी घमासान जारी है। इस बीच सपा, टीएमसी और आप ने बिल की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का बहिष्कार करने का फैसला किया है। तीनों विपक्षी दलों के रुख के बाद कांग्रेस पर JPC के बहिष्कार का दबाव बढ़ गया है।
Bill to remove Prime Minister and Chief Minister: प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की बर्खास्तगी से जुड़े बिल को लेकर सियासी घमासान जारी है। इस बीच सपा, टीएमसी और आप ने बिल की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का बहिष्कार करने का फैसला किया है। तीनों विपक्षी दलों के रुख के बाद कांग्रेस पर JPC के बहिष्कार का दबाव बढ़ गया है।
दरअसल, विपक्षी पार्टियों ने इस बिल का खुलकर विरोध किया है। उनको जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का डर है। विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि केंद्र सरकार सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल विरोधियों को निशाना बनाने में करती है। ऐसे में जिन राज्यों में विपक्ष की सरकार वहां पर एजेंसियों का इस्तेमाल करके इस्तेमाल करके सरकार को गिराया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने इस समिति को ‘नौटंकी’ बताते हुए बहिष्कार किया। इसके बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया कि उनकी पार्टी JPC में शामिल नहीं होगी। अब अरविंद केजरीवाल की आप ने भी यही रुख अपनाया है। वहीं, अब तक जेपीसी का हिस्सा बनने के पक्ष में दिख रही कांग्रेस अब असमंजस की स्थिति में है।
कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों की सोच में अंतर
माना जा रहा है कि कांग्रेस संसदीय समितियों की कार्यवाही कोर्ट में अहम मानती है और विवादित बिलों पर जनमत को प्रभावित करती है, लेकिन बहिष्कार ने विपक्षी समीकरण बदल दिए हैं। दूसरी तरफ, जेसीपी के बहिष्कार के पक्ष में दिख रहे विपक्ष चाहते हैं कि इस बिल पर बनाई गई जेपीसी में विपक्ष का कोई सदस्य शामिल न हो। ऐसे में जेपीसी में केवल सत्ता पक्ष के ही सदस्य रह जाएंगे। सरकार इसके लिए भी तैयार है। हालांकि यह अलग प्रश्न है कि बिना विपक्ष के ऐसी संसदीय समिति का क्या औचित्य रह जाएगा।