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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लगाई फटकार, पूछा- अवैध बांग्लादेशियों को वापस क्यों नहीं भेजा जा रहा

Illegal Bangladeshi Migrants: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी प्रवासियों (Illegal Bangladeshi Migrants) की अनिश्चितकालीन हिरासत पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही कोर्ट ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को निर्वासित करने के बजाय सुधार गृहों में लंबे समय तक हिरासत में रखने के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने  लगभग 850 अवैध प्रवासियों की अनिश्चितकालीन हिरासत पर चिंता व्यक्त की।

By Abhimanyu 
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Illegal Bangladeshi Migrants: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी प्रवासियों (Illegal Bangladeshi Migrants) की अनिश्चितकालीन हिरासत पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही कोर्ट ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को निर्वासित करने के बजाय सुधार गृहों में लंबे समय तक हिरासत में रखने के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने  लगभग 850 अवैध प्रवासियों की अनिश्चितकालीन हिरासत पर चिंता व्यक्त की।

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि जब किसी अवैध बांग्लादेशी प्रवासी (Illegal Bangladeshi migrants) को पकड़ा जाता है और विदेशी अधिनियम 1946 के अंतर्गत उसे दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी सजा पूरी होने के तुरंत बाद उसे निर्वासित किया जाना चाहिए। पीठ ने पूछा कि विदेशी अधिनियम के अंतर्गत अपनी सजा पूरी करने के बाद फिलहाल कितने अवैध आप्रवासियों (Illegal immigrants) को विभिन्न सुधार गृहों में हिरासत में रखा गया है? कोर्ट ने 2009 के परिपत्र के खंड 2 (v) का पालन करने में सरकार की विफलता पर सवाल उठाया, जो निर्वासन प्रक्रिया (Deportation Process) को 30 दिनों में पूरा करने का आदेश देता है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस बात पर भी केंद्र से ठोस स्पष्टीकरण की जरूरत पर प्रकाश डाला कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से क्या कदम अपेक्षित हैं। बता दें कि माजा दारूवाला बनाम भारत संघ का मामला 2013 में कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) से सुप्रीम कोर्ट में भेजा गया था। यह मामला मूल रूप से 2011 में शुरू हुआ जब एक याचिकाकर्ता ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों (Illegal Bangladeshi Migrants) की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जिन्हें उनकी सजा पूरी होने के बाद भी पश्चिम बंगाल सुधार गृहों में कैद रखा गया था।

कोर्ट में स्थानांतरित होने से पहले कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था। पीठ ने कहा कि ये प्रथाएं मौजूदा दिशा-निर्देशों के विपरीत हैं, जो तेजी से निर्वासन प्रक्रियाओं की जरूरतों को रेखांकित करती हैं। मामले की अगली सुनवाई 6 फरवरी को होगी।

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