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भूमि नीलामी घोटाले में फंसे ओपी चैन्स ग्रुप को बचाने की कौन कर रहा कोशिश? कार्रवाई के नाम पर सिर्फ जांच पर जांच

उप्र आवास विकास परिषद के कई अफसरों की मिलीभगत से ये काम किया जा रहा है, जिसके कारण अरबों की जमीन को कौड़ियों में खरीदने वाले ओपी चैन्स ग्रुप के मालिक पर कार्रवाई नहीं हो रही है। तत्कालीन कई अधिकारियों ने अपनी जांच में ये साफ कर दिया था कि, भूमि नीलामी में अनदेखी करके अरबों की जमीन पर कब्जा किया गया है। बावजूद इसके उप्र आवास विकास परिषद के अफसर ओपी चैन्स ग्रुप पर मेहरबान है।

By टीम पर्दाफाश 
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आगरा। अरबों की जमीन को कौड़ियों में खरीदने वाले भारत नगर सहकारी आवास समिति (ओपी चौन्स ग्रुप) को बचाने का हर खेल खेला जा रहा है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रशासन के हर बड़े अफसर तक इसकी शिकायत की जा चुकी है लेकिन कार्रवाई के नाम पर जांच का खेल जारी है। करीब पांच साल से उप्र आवास विकास परिषद के अधिकारी लगातार जांच के नाम पर ओपी चौन्स ग्रुप की इस कंपनी को संरक्षण दे रहे हैं। सूत्रों की माने उप्र आवास विकास परिषद (UP Housing Development Board) के कई अफसरों की मिलीभगत से ये काम किया जा रहा है, जिसके कारण अरबों की जमीन को कौड़ियों में खरीदने वाले ओपी चैन्स ग्रुप के मालिक पर कार्रवाई नहीं हो रही है। तत्कालीन कई अधिकारियों ने अपनी जांच में ये साफ कर दिया था कि, भूमि नीलामी में अनदेखी करके अरबों की जमीन पर कब्जा किया गया है। बावजूद इसके उप्र आवास विकास परिषद के अफसर ओपी चैन्स ग्रुप पर मेहरबान है।

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मुख्यमंत्री का निर्देश भी अधिकारियों पर बेअसर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार भू माफियाओं पर कार्रवाई की बात कह रहे हैं। इसको लेकर वो निर्देश भी दे रहे हैं। बावजूद इसके उप्र आवास विकास परिषद के अफसरों पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। वो बीते करीब पांच सालों से ओपी चैन्स ग्रुप की इस करतूत को जानते हुए भी उसे बचाने का काम कर रहे हैं।

शिकायत पर हर बार जांच का आदेश लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं
भूमि नीलामी घोटाले में फंसे ओपी चैन्स ग्रुप की कंपनी भारत नगर सहकारी आवास समिति को बचाने का अधिकारी हर उपाय कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल पर भी इस भूमि नीलामी घोटले की शिकायत की गयी है। इसके बाद भी जांच का आदेश देकर अधिकारी खानापूर्ति कर इसे भूल जाते हैं। बीते पांच सालों से ज्यादा समय हो गया, जबसे अधिकारी ओपी चैन्स ग्रुप को बचाने में जुटे हैं।

अभिलेख जांच समिति को प्राप्त नहीं होने का भी खेल
उप्र आवास विकास परिषद के अफसर भी जांच के नाम पर बीते पांच सालों से भूमि नीलामी घोटाले में फंसे आरोपी को बचाने का काम कर रहे हैं। एक के बाद कई शिकायतें विभाग और आलाधिकारियों से की गईं लेकिन अब उनका कहना है कि अभिलेख जांच समिति को प्राप्त नहीं हो रही हैं। बता दें कि, सिकंदरा योजना में सेक्टर 12 और 15 में एंथम एंथेला की भूमि नीलामी घोटाला प्रकरण लगातार सुर्खियों में रहा है। उत्तर प्रदेश शासन से लेकर आगरा प्रशासन तक के प्रमुख अधिकारियों को अरबों के इस जमीन घोटाले की जानकारी है। बावजूद इसके इस घोटले के आरोपी भारत नगर हाउसिंग जो कि ओपी चौन्स ग्रुप की कंपनी है, उसके मालिक को बचाया जा रहा है। कई बार हुई जांच में ये साफ हो चुका है कि भारत नगर हाउसिंग के मालिक ने धोखाधड़ी कर अरबों की जमीन पर कब्जा किया है। बावजूद इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा रही है। बता दें कि, इस भूमि को भारत नगर हाउसिंग जो कि ओपी चौन्स ग्रुप की कंपनी है, उसके मालिकों ने धोखाधड़ी के माध्यम से भारत नगर गृह निर्माण समिति की जमीन को परिषद के आला अधिकारियों से सांठगांठ कर कब्जा लिया था।

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जांच के लिए गठित हुई थी चार सदस्यीय समिति
इस पूरे मामले में लगातार शिकायतें होती रही हैं और उसी का परिणाम था कि तत्कालीन आवास आयुक्त अजय चौहान ने प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन को पत्र लिखकर इस संबंध में शासन स्तर से जांच कराने की मांग की थी। अजय चौहान के इस पत्र पर संज्ञान लिया गया और शासन ने इस पूरे मामले की सही से जांच करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन कर दिया। इस मामले की चार सदस्यीय टीम टीम द्वारा जांच होने से इस भूमि की धोखाधड़ी में संलिप्त लोगों में हड़कंप मचा गया था।

ये है मामला
सिकंदरा योजना में सेक्टर 12 और 15 में एंथम एंथेला की भूमि में नीलामी घोटाला प्रकरण लगातार सुर्खियों में रहा है। क्योंकि इस भूमि को भारत नगर हाउसिंग जो कि ओपी चौन्स ग्रुप की कंपनी है, उसके मालिकों ने धोखाधड़ी के माध्यम से भारत नगर गृह निर्माण समिति की जमीन को परिषद के आला अधिकारियों से सांठगांठ कर कब्जा लिया था।

इन बिंदुओं पर होनी है जांच
शासन की ओर से इस पूरे मामले को लेकर जो जांच बिठाई गई है वह जांच लगभग 14 बिंदुओं पर होनी है और इन्हीं बिंदुओं के आधार पर रिपोर्ट सौंपी जानी है किन बिंदुओं पर होनी है जांच आइए आपको बताते हैं

1- नीलामी की शर्त के अनुसार किसानों एवं अवरोध उत्पन्न करने वालों की समिति से बोलीदाता/बिल्डर्स को समझौते के माध्यम से कब्जा प्राप्त करना था किंतु कोई समझौता नहीं हुआ जिससे नीलामी की शर्तों का उल्लंघन हुआ है।

2- भूमि पर भौतिक कब्जा (बोलीदाता/समिति का) नीलामी से पहले 27 नवंबर 2016 को हो चुका था बाउंड्री वॉल बन चुकी थी नीलामी मात्र औपचारिकता थी।

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3- इतनी अधिक मूल्य की बेशकीमती भूमि की नीलामी ई टेंडरिंग (पारदर्शी) प्रक्रिया से ना कराकर मात्र दो समाचार पत्रों में नोटिस छपवाकर निविदा की गई।

4- नीलामी से पूर्व से अवैध कब्जेदार/अवरोधक समिति/बिल्डर ओपी चौन ग्रुप के ही दो कंपनियों ने भाग लिया।

5- तत्कालीन परिषद अधिकारियों द्वारा भूमि मूल्य की गणना परिषद नियमों के विरुद्ध गलत फार्मूले के आधार पर की गई। भूमि की तत्समय में बाजार दर 40000 प्रति वर्ग मीटर थी। सर्किल दर 14000 प्रति वर्ग मीटर थी किंतु मात्र 11000 प्रति वर्ग मीटर की दर पर नीलामी कर दी गई। भूमि मूल्य की गणना केवल आवासीय दर पर की गई जबकि संपूर्ण भूमि का 20ः व्यावसायिक भी था जिसका घाटा परिषद को हुआ।

6- नीलामी के तहत मात्र रुपये 166.01 करोड़ की रकम के भुगतान में भी बिल्डर को सहूलियत दी गई। नीलामी प्रपत्र के समय 30ः एक बार जमा कराया गया फिर 15ः 25 तिमाही किस्तों में जमा करने की छूट दी गई।

7- भूमि पर परिषद द्वारा भौतिक कब्जा लेने हेतु जिला प्रशासन के सहयोग से मात्र एक बार दिनांक 23 दिसंबर 2010 को असफल प्रयास किया गया। परिषद के अधिकारियों के द्वारा उक्त भूमि पर भौतिक कब्जा प्राप्त करने हेतु जिला प्रशासन से पूर्ण सहयोग लेने के लिए कभी भी कोई सकारात्मक/प्रभावी प्रयास/कार्रवाई नहीं की गई। (यह तथ्य मंडलायुक्त की जांच में भी उल्लेखित हैं) भूमि पर भौतिक कब्जा लेने हेतु शिथिलता बरतने वाले परिषद के तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी/जनपदीय प्रशासन/पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच हो।

8- भूमि अधिग्रहण 1970 में हुआ जबकि समिति रजिस्टर्ड 1971 में हुई। समिति ने भूमि अर्जन को कोर्ट में चुनौती दी किंतु परिषद द्वारा समिति की वैधता को कोर्ट में चुनौती नहीं दी।

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9- नीलाम की गई भूमि में कई किसानों ने मुआवजा नहीं लिया था। खतौनी पर उन कृषकों का ही नाम था तथा उनका मुकदमा न्यायालय में चल रहा था।

10- कुल 36 एकड़ भूमि में से विवाद (जो कोर्ट में चल रहे थे) मात्र 10 एकड़ भूमि में था। अतएव शेष 26 एकड़ भूमि पर परिषद भौतिक कब्जा ले सकता था किंतु ऐसा नहीं किया गया।

11- स्थानीय अदालतों ने समिति के सभी दावों को वर्ष 2010, 2012, 2014 में खारिज करके भूमि पर परिषद को कब्जा लेने के निर्देश दिए गए थे किंतु परिषद द्वारा स्थानीय प्रशासन के सहयोग से भूमि कब्जा लेने का कोई ठोस/प्रभावी प्रयास नहीं किया गया।

12- वर्ष 2015 में श्री शोभित गोयल का भारत नगर सहकारी आवास समिति का सचिव बनने एवं हटाए जाने के विवाद की जांच, क्योंकि प्रकरण में मुख्य बोलीदाता शोभिक गोयल ही थे।

13- उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद मुख्यालय लखनऊ के तत्कालीन अधिकारीगण (श्री राम प्रकाश तत्कालीन अपर आवास आयुक्त/उप निबंधक, श्री रूद्र प्रताप सिंह तत्कालीन आवास आयुक्त) आदि की भूमिका की जांच हो।

14- जिलाधिकारी आगरा के पत्र संख्या-816 एसीएम फर्स्ट,दिनांक 23-9-2019 द्वारा उपलब्ध कराई गई अंतरिम जांच आख्या के क्रम में अंतिम जांच आख्या प्राप्त किया जाना।

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