अक्षय तृतीया का दिन अक्षय कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को समाहित किए हुए इस दिन को बीज, फल, विषमुक्त औषधि, समृद्धि, सौभाग्य और सफलता का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किसान अपनी फसल की कटाई का जश्न मनाते हैं, जो कृषि कर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Akshaya Tritiya 2025 : अक्षय तृतीया का दिन अक्षय कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को समाहित किए हुए इस दिन को बीज, फल, विषमुक्त औषधि, समृद्धि, सौभाग्य और सफलता का प्रतीक माना जाता है। अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किसान अपनी फसल की कटाई का जश्न मनाते हैं, जो कृषि कर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। किसान फसल पकने बाद उत्सव की शुरुआत इसी दिन से करते है। अक्षय तृतीया की तिथि, मुहूर्त कृषि जीवन शैली के लिए धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। कृषक इस खास अवसर पर पूजा, दान और शुभ कार्य के साथ भोज, नृत्य संगीत का आयोजन करते है।
ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है। अक्षय तृतीया के दिन शुभ मुहूर्त होने के कारण किसान इस दिन बीज बोते हैं, खेती की शुरुआत करते हैं। यदि किसी कारण कोई किसान धान बीज की बुआई नहीं कर पाते हैं, तो कद्दू, लौकी, खीरे का बीज बोकर शुभ मुहूर्त का लाभ उठाते है। प्राचीन मान्यता है कि इस अचूक दिन बीज बोने से फसल में दैवी शक्ति का संचार होता है, जिससे अच्छी उपज मिलती है और दाने पुष्ट और बलशाली होते हैं। पौधरोपण के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। परंपरागत किसानों में प्रचलित है कि अक्षय तृतीया के दिन फलदार वृक्ष लगाने से वे अधिक फल देते हैं और निरोगी रहते है।अक्षय तिथि पर किसान भगवान विष्णु की पूजा के माध्यम से प्रार्थना करते हैं कि फसलों को प्राकृतिक आपदा का दंश न झेलना पड़े और प्राकृतिक जलस्रोत के भंडार भरे रहे। मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो और फसल कीट पतंगों और हानिकारक घासों से सुरक्षित रहे।
परंपरागत कृषि में शुभ मुहूर्त और देव पूजा के साथ होम ,अग्निहोत्र जैसे कार्यों की एक महत्वपूर्ण भूमिका हैं। प्राचीन कृषि कर्म में मान्यता थी कि अग्निहोत्र की आग वातावरण को पोषक और निरोग बनाती है, जिससे खेत में खरपतवारों का नियंत्रण होता है। इसी तरह शुभ मुहूर्त में कृषि उपकरणों का भी पूजन किया जाता है। इस प्रकार की मान्यताएं कृषि कर्म को स्वस्थ और समृद्ध बनाने में और कुछ परंपरागत बारीकियां आधुनिक युग की खेती को नई ऊर्जा प्रदान कर रहे है। भारतीय पर्व और त्योहार प्राचीनता और आधुनिकता के संतुलन बिंदु को स्थापित करते है।
भारतीय तीज – त्योहारों में वैदिक परम्पराओं की अनंत गहराई निहित हैं। यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।ये कृषि जीवन को दिव्य शक्तियों के प्रति जागृत करते हैं। इससे कृषि चक्रों को निर्बाध गति मिलती है। कृषकों में परिवर्तनों ,नियंत्रणों और दिव्य शक्तियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने कला विकसित होती है और आकस्मिक परिस्थितियों से जूझने की हिम्मत पैदा होती है। सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव स्थिर होता है और जगत पोषण के लिए उत्साह बना रहता है।