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मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय आगरा में भ्रष्टाचार व अनियमितता चरम पर, कार्यवाहक निदेशक की शिकायत सीएम योगी तक पहुंची, उच्च स्तरीय जांच की मांग

मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय आगरा में नियुक्ति, पुनः नियुक्ति तथा मूल पदों पर कार्य के सापेक्ष सम्बन्धी अनियमिताएं, क्रय व विभिन्न मदों के कार्यों के भुगतान में हो रहे भ्रष्टाचार व अन्य अनियमिता की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर की गई है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

आगरा। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय आगरा में नियुक्ति, पुनः नियुक्ति तथा मूल पदों पर कार्य के सापेक्ष सम्बन्धी अनियमिताएं, क्रय व विभिन्न मदों के कार्यों के भुगतान में हो रहे भ्रष्टाचार व अन्य अनियमिता की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर की गई है। शिकायत में उल्लेख किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय आगरा में चल रही धांधली न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि संस्थान की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रही है। मरीजों के इलाज की गुणवत्ता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रही है।

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नियुक्ति, पुनः नियुक्ति, तथा मूल पदों पर कार्य के सापेक्ष गंभीर अनियमितताएं

संस्थान में योग्य और अनुभवी उम्मीदवारों को दरकिनार कर कार्यवाहक निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने अपने चाहेंतो और सगे संबंधियों को नियुक्त कर दिया है।जिसमें एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसेलिटीज (एटीएफ) स्कीम के तहत नेशनल हेल्थ मिशन के प्रावधानों एवं नियमों व शर्तों की अनदेखी करते हुए निदेशक ने अपने रिश्तेदार (प्रदीप राठौर) को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए मेडिकल ऑफिसर के पद पर अलग से विशेष विज्ञप्ति प्रकाशित कराकर संस्थान के माध्यम से (संविदा) पर नियुक्त कर लिया।

इसके अलावा मैनपॉवर एजेंसी हर्ष इंटरप्राइजेज के माध्यम से बिना किसी नई निविदा प्रक्रिया के ही नियुक्तियां कर ली गई। निदेशक ने पुरानी एजेंसी हर्ष इंटरप्राइजेज के माध्यम से अपने परिचितों की नियुक्ति करवाना एजेंसी को अनुचित लाभ पहुंचाने और व्यक्तिगत लाभ के लिए पद के दुरुपयोग की ओर इशारा करता है। यह मामला सरकारी संस्थान में नियुक्ति प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है नियमानुसार इन सभी पदों पर नियुक्ति के लिए एक नई और खुली निविदा प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

संस्थान में निदेशक के कई रिश्तेदार व परिचित हैं जिन्हें एजेंसी के माध्यम से पुनः नियुक्त किया गया है जो इसी संस्थान या अन्य सरकारी विभाग से 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर सेवानिवृत हो चुके हैं। यह सभी व्यक्ति सरकार से अपनी मासिक पेंशन का लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं ।संस्थान के निदेशक ने हाल ही में अपने निजी सहायक एवं (प्रशासनिक अधिकारी) के पद पर अपने सेवानिवृत चचिया ससुर ओम प्रकाश सेंगर को एजेंसी के माध्यम से नियुक्त किया है। यह नियुक्ति संस्थान में भाई भतीजा बाद को बढ़ावा देती है। निष्पक्षता एवं पारदर्शिता के सिद्धांतों की विपरीत है। निदेशक पद का दुरुपयोग करके अपने व्यक्तिगत लाभ और परिवार के सदस्यों को लाभ पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया गया है।

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इस नियुक्ति का उद्देश्य संस्थान के अंदर अनुचित प्रभाव डालना, ठेका और खरीद प्रक्रिया में हेर फेर करना या किसी अन्य प्रकार से निजी हितों को साधना हो सकता है। यह प्रक्रिया न केवल सरकारी सेवा नियमावली और वित्तीय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। सामान्यतः सरकारी नियमों के अनुसार पेंशन प्राप्त कर रहे सेवानिवृत कर्मचारियों को किसी सरकारी संस्थान में पुनः पूर्ण कालीन वेतन पर नियुक्त नहीं किया जा सकता खासकर जब यह नियुक्ति एक एजेंसी के माध्यम से नियमों को दरकिनार करने के लिए की जा रही हो। यह दोहरे लाभ की स्थिति उत्पन्न करता है जो वित्तीय अनुशासन के विरुद्ध है।

संस्थान में मूल पदों के विपरीत अन्य पदों पर कार्य कराए जाने विशेषकर (स्टोर कीपर) के पद पर दीर्घकालीन एवं संबंधित वित्तीय अनियमिताओं के संबंध में। संस्थान में कई ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें उनके मूल पदनाम और निर्धारित कर्तव्यों से बिल्कुल अलग कार्यों सौंपे गए हैं यह उनकी विशेषज्ञता का अनुचित उपयोग है। बल्कि यह सेवा नियमों का भी स्पष्ट उल्लंघन है जिसमें एक (स्टोर कीपर) का पद प्रमुख है जिसे स्थाई रूप से किसी उपयुक्त व्यक्ति द्वारा भरा न जाकर लगातार अन्य मूल पद के कर्मचारी द्वारा कार्यवाहक के रूप में संचालित किया जा रहा है। फार्मासिस्ट के पद पर नियुक्त संजय वर्मा जिनसे उनके मूल पद फार्मासिस्ट के कर्तव्यों के बजाय वर्ष 2021 से लगातार स्टोर कीपर का कार्य लिया जा रहा है । यह स्थिति लगभग 5 वर्षों से बनी हुई है यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वर्तमान निदेशक व अन्य अधिकारियों द्वारा जानबूझकर नियमों की अनदेखी की जा रही है एक फार्मासिस्ट का स्टोर कीपर के रूप में इतने लंबे समय तक कार्य करना, बिना किसी उचित प्रक्रिया या पद सृजन के संस्थान के नियमों और प्रक्रियाओं पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाता है।

यह अनियमितता केवल संजय वर्मा तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसे कई अन्य मामले भी संस्थान में मौजूद है। जहां एजेंसी द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों की उपस्थिति अनाधिकृत पदों पर दर्ज की जा रही है। इस प्रकार की कार्यप्रणाली के गंभीर निहितार्थ हैं। जैसी वित्तीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार, वित्तीय लाभों के वितरण में हेरफेर, कर्मचारी असंतोष, इत्यादि आपसे विनम्र अनुरोध है कि इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष एवं व्यापक जांच करने का कष्ट करें विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर गहन जांच की जाए। स्टोर कीपर के पद पर कार्यरत संजय वर्मा सहित सभी कर्मचारियों की सूची और उनके कार्य आवंटन आदेशों की समीक्षा। इस कार्यवाहक नियुक्ति के पीछे के कारणों और संबंधित अधिकारियों विशेषकर कार्यवाहक निदेशक डॉक्टर दिनेश सिंह राठौर की भूमिका की जांच। स्टोर कीपर के रूप में हो रही खरीद, स्टॉक और वित्तीय लेनदेन का ऑडिट जिससे अनियमितता या कमीशनखोरी का पता लगाया जा सके। आउटसोर्स कर्मचारियों की उपस्थित प्रक्रिया की जांच जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी उपस्थिति उनके मूल पदों पर ही दर्ज की जा रही है।

क्रय प्रक्रिया में नीतिगत एवं वित्तीय अनियमिता

क्रय प्रक्रिया के दौरान संस्थान के निदेशक द्वारा नियम व दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन किया जा रहा है और मनमाने ढंग से अपने परिचित व रिश्तेदार आपूर्तिकर्ता का चयन कर अनावश्यक स्वीकृतियां प्राप्त की जा रही है जिनका कोई मूल्यांकन मानदंड स्पष्ट नहीं है। कई क्रय आदेशों में बाजार मूल्य या स्वीकृत अनुमानित लागत से काफी अधिक दरो पर सामग्री व सेवाओं की खरीदारी की जा रही है कोटेशन प्रक्रिया में हेर-फेर कर अपने परिचितों व रिश्तेदार आपूर्तिकर्ताओं को लाभ पहुंचाया जा रहा है। संस्थान में निदेशक द्वारा हाल ही में मशीनी उपकरणों की खरीद फरोख्त प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर वित्तीय लाभ उठाया गया है मेरे व्यक्तिगत अवलोकन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन उपकरणों की खरीद में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है खरीदी गई मशीनें एवं उपकरणों का मूल्य बाजार मूल्य से काफी अधिक है जिसमें लाखों रुपए का गवन किया गया है यह कमीशनखोरी न केवल संस्थान के वित्तीय संसाधनों का दुरुपयोग है बल्कि घोर अनियमितता की ओर इशारा करता है।

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विभिन्न स्कीमों के मदों में हुए गलत भुगतान गंभीर वित्तीय अनियमिताएं और भ्रष्टाचार के संबंध में स्पष्ट करना चाहूंगा की संस्थान को भारत सरकार द्वारा सेंटर ऑफ एक्सीलेरा योजना के तहत प्राप्त की गई धनराशि का उद्देश्य चिकित्सा सेवाओं, अनुसंधान और शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करना था परंतु इस विशिष्ट योजना के तहत आवंटित धनराशि का उपयोग उनके निर्धारित मदों में ना करके गलत और अनुचित मदों में खर्च किया गया है यह स्पष्ट रूप से सरकार को गुमराह करने और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने का गंभीर मामला है संस्थान के वर्तमान कार्यवाहक निदेशक डॉक्टर दिनेश सिंह राठौर द्वारा हाल ही में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की धनराशि का एक बड़ा हिस्सा कमीशन खोरी के चक्कर में कैपिटल निर्माण कार्य के मद में जल निगम एजेंसी को मुगतान करके खर्च किया गया है चूंकि कैपिटल निर्माण कार्य के मद में पहले से ही स्वीकृत धनराशि से 2 करोड रुपए अधिक खर्च हो जाने के बाद भी निदेशक ने पुन वित्तीय अनियमितता की है भारत सरकार द्वारा स्वीकृत बजट से अधिक धनराशि खर्च करने पर नाराजगी जताई गई तो संस्थान के कार्यवाहक निदेशक डॉक्टर दिनेश सिंह राठौड द्वारा जल निगम को दी गई धनराशि को माह मार्च 2025 में आनन—फानन में वापस लिया गया जो की एक सदेह जनक स्थिति पैदा करने के साथ-साथ चिकित्सालय के निदेशक व अधिकारियों द्वारा मनमानी कर भ्रष्टाचार पर भी सवाल खड़ा करता है रोटर ऑफ एक्सीलेस योजना की धनराशि का उपयोग कई ऐसी अनावश्यक व्ययो में किया गया है जो इस स्कीम के लक्ष्यों उद्देश्यों के अनुरूप नहीं है इस स्कीम की धनराशि का उपयोग कई तरह की अनुपयुक्त खरीदारी के लिए किया गया है जिसमें निदेशक द्वारा अपने नजदीकी रिश्तेदार पवन चौहान (फर्म) मेडिकेयर प्लस हेल्थ केयर को लाभ पहुंचाने के लिए लगभग 45 से 50 लाख के कई ऐसे मशीन उपकरण और सेवाओं की खरीदारी की गई है जिसकी चिकित्सालय को तत्काल आवश्यकता नहीं थी जिन्हें कमीशन खोरी के चक्कर में बाजार मूल्य से कहीं अधिक मूल्य पर खरीदा गया है मेरा आपसे अनुरोध है कि इस मामले की उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जाच के दौरान सभी संबंधित दस्तावेजों खरीद रिकॉर्ड नियमावली / भुगतान आदेश / कैश बुक स्टॉक रजिस्टर और संपूर्ण व्यय विवरण की गहनता से जांच की जाये।

संस्थान में स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HIMS) सोल्यूशन के कार्यान्वयन हेतु आवंटित धनराशि के संबंध में

इस महत्त्वपूर्ण परियोजना के लिए निर्धारित बजट में निदेशक द्वारा कई प्रकार से वित्तीय धांधलीयां की जा रही है। अनुचित मदों में व्यय (HIMS) सॉल्यूशन का मुख्य उद्देश्य चिकित्सालय के प्रबंधन और रोगी डाटा को डिजिटाइज करना है आवत धनराशि को उन गदी में में खर्च किया जा रहा है जो सीधे तौर पर (HIMS) के कार्यान्वयन से संबंधित नहीं है इस स्कीम के तहत आवंटित धनराशि से से निदेशक द्वारा अपने खास परिचित आपूर्तिकर्ता पूर्तिकर्ता को को वित्तीय लाभ पहुंचाने के लिए अनावश्यक सॉफ्टवेयर / हार्डवेयर की खरीदारी की जा रही तक जैसे- डेक्सटॉप कंप्यूटर, गृ० पी एस० प्रिंटर, बारकोड स्कॅनर टेबलेट इत्यादि है जिसमें मोटे कमीशन का खेल किया जा रहा है तथा यह उपकरण आज दिना नहीं हुए है और और धूल खा रहे हैं। इसका सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य सस्थान में इंस्टॉल नहीं प्रकरन पर पड़ रहा है जो इस परियोजना का मूल की सेवाओं दक्षता और होगी डेटा प्रक्दन पर प उद्देश्य था मेरा आपसे निवेदन है कि इस मामले की तत्काल और उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।

अन्य गंभीर वित्तीय अनियमिताएं

सीएम योगी जी आपको स्पष्ट करना चाहूंगा कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय आगरा में पिछले कई वर्षों से महा अप्रैल से अक्टूबर तक लगभग 500 से अधिक मानसिक रोगी भर्ती रहते थे जो कि वर्तमान में कई माह से 280 से 300 तक है जहां भर्ती रोगियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है, जबकि इसके विपरीत आउटसोर्स और नियमित कर्मचारियों की संख्या अत्यधिक है आउटसोर्स के अलावा संविदा, एस आर, जे आर, टेलीमानस से लगभग 450 कर्मचारी कार्यरत हैं जो कि वित्तीय अनियमिता का स्पष्ट संकेतक है जो कि संस्थान की विशाल क्षमता और इसे संचालित करने के लिए भारी भरकम बजट के बिल्कुल विपरीत है जो कि संदेह की स्थिति पैदा करता है कम गर्ती रोगियों के बावजूद भारी भरकम स्टाफ, बिजली, पानी तथा अन्य प्रशासनिक खर्चों पर संस्थान को मिलने वाले बजट का दुरुपयोग किया जा रहा है चूंकि 280 मरीजों पर 450 कर्मचारी कार्यरत हैं जो की प्रति/भर्ती रोगी के अनुपात से कहीं ज्यादा है जबकि पूर्व में संस्थान को शासन द्वारा प्रति भर्ती रोगी के हिसाब से बजट उपलब्ध कराया जाता था तो भर्ती रोगियों की संख्या अधिक रहती थी परंतु जब से शासन द्वारा संस्थान के बजट को भर्ती रोगी संख्या से हटकर एक निश्चित नियमित धनराशि के रूप में बजट उपलब्ध कराया जा रहा है तब से वर्तमान कार्यवाहक निदेशक डॉ दिनेश सिंह राठौर द्वारा इसका भरपूर फायदा उठाया जा रहा है और संस्थान को एक लूट केंद्र बना रखा है इस गंभीर मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर कराने का कष्ट करें।

पिछले 1 वर्ष में भर्ती किए गए रोगियों की मासिक औसत संख्या।

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नियमित और आउटसोर्स कर्मचारियों की वर्तमान स्वीकृति और कार्यरत संख्या का विस्तृत विवरण, उनके पदनाम और कर्तव्यों के साथ।

आउटसोर्स एजेंसी के साथ हुए अनुबंध की शर्तों और भुगतान किए गए बिलों की संघनन जाँच।

प्रत्येक कर्मचारी के कार्य और उपस्थिति का सत्यापन। संस्थान में कर्मचारियों की आवश्यकता का वास्तविक आंकलन जो रोगियों की संख्या और सेवाओं की आवश्यकता के अनुरूप हो।

मानव आपूर्ति एजेंसी हर्ष इंटरप्राइजेज और निर्देशक की मिली भगत से किए जा रहे घोटाले एवं अनियमिताएं

शिकायतकर्ता ने लिखा कि योगी जी आपको स्पष्ट करना चाहूंगा की संस्थान का महत्वपूर्ण टेंडर मानव आपूर्ति से संम्बंधित है जिसका वार्षिक बिल लगभग 7.5 करोड रुपए होता है अपने निजी हितों की पूर्ति करने हेतु निदेशक की मिली भगत से एजेंसी को पूर्ण संरक्षण व स्वामित्य प्राप्त है जिसमें एजेंसी द्वारा कार्यरत कर्मचारियों के इपीएफ ईएसआई एवं वेतन में जमकर घोटाले किए जा रहे हैं एवं डमी कैंडिडेट के रूप में कर्मचारियों को दर्शाकर तथा उपस्थितियों में हेर फेर करके लाखों रुपऐ माह का गवन किया जा रहा है जिसमें निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर जांच की जानी चाहिए।

इपीएफ संबंधी अनियमिताएं

जिसमें कई माह से कर्मचारियों का इपीएफ जमा नहीं किया जा रहा है।

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कर्मचारियों की इपीएफ पासबुक में अपडेट एंट्री नहीं दिख रही तथा जमा की गई राशि वास्तविक वेतन से काटे गए योगदान से मेल नहीं खा रही है।

ईएसआई संबंधी अनियमिताएं

संस्थान में कार्यरत कुछ कर्मचारियों के वेतन से ईएसआई प्रीमियम कटौती की जा रही है परंतु ज्यादातर कर्मचारियों का ईएसआई जमा नहीं किया जा रहा है।

कई कर्मचारियों के पास ईएसआई कार्ड नहीं है। जिससे उन्हें चिकित्सा सुविधा का कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है।

वेतन संबंधी अनियमिताएं

कर्मचारियों को वेतन अनियमित रूप से प्राप्त हो रहा है तीन से माह की देरी तक वेतन प्राप्त होता है। ज्यादातर कर्मचारियों के वेतन से बिना किसी पूर्व सूचना या रपष्टीकरण के वेतन कटौती करके दिया जाता है जिसका कोई हिसाब नहीं है। कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन की कोई वेतन पर्ची/पे-रिलप उपलब्ध नहीं कराई जाती है जिससे वह अपनी कटौती और कुल आय की जांच नहीं कर पाते।

कर्मचारियों की उपस्थिति प्रणाली

संस्थान में एजेंसी के अनुबंध के अनुसार बायोमेट्रिक हाजिरी के आधार पर ही बिल भुगतान मिलना चाहिए था परंतु लगातार पिछले 4 वर्षों से बिना बायोमेट्रिक उपस्थित सत्यापन के संस्थान के निर्देशक, प्रभारी मैनपींवर एवं सह प्रभारी द्वारा लगातार बीजको का भुगतान एजेंसी को किया जा रहा है कर्मचारियों की बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली को जानबूझकर नजर अंदाज किया जा रहा है और कर्मचारियों की उपस्थिति मैन्युअल रूप से दर्ज की जा रही है जिससे वित्तीय अनियमिताओं को अंजाम देना आसान हो गया है।

ऐसे व्यक्तियों के नाम पर उपस्थिति दर्ज की जा रही है जो वास्तव में संस्थान में कार्यरत नहीं है और उन्हें डमी कर्मचारियों के रूप में दर्शाया गया है और उनके नाम पर वेतन लेकर आपस में बंदर बाट दिया जा रहा है। शिकायकर्ता ने कहा कि मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा की मानव आपूर्ति एजेंसी का अनुबंध वर्ष के अल्पकालीन समय के लिए हुआ था जिसे अच्छी एवं उत्कृष्ट रोगाओं के उपरांत 3 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता था परंतु एजेंसी द्वारा शुरुआत से ही भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताएं की गई फिर भी वर्तमान कार्यवाहक निदेशक द्वारा जानबूझकर अपने निजी हित और लाभ के लिए लगातार पिछले 5 वर्षों से चलाया जा रहा है जिससे सरकारी फंड को लाखों रुपए माह की क्षति पहुंचाई जा रही है इरा गंभीर मामले की निष्यमा जाच करने का कष्ट करें

शिकायकर्ता ने लिखा है कि कार्यवाहक निदेशक के अधिकार सामान्यत एक स्थाई निदेशक की तुलना में सीमित होते नीतिगत और नियुक्तियां जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए कार्यवाहक निदेशक पर कुछ प्रतिबंध हो सकते हैं इस तरह के विवादास्पद आदेश/निर्देश उनके अधिकार क्षेत्र के सम्भावित गभीर उल्लघन का भी मामला मनता है इन सभी मामलों में वर्तमान कार्यवाहक निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर द्वारा अपनी सीमित कार्यकारी शक्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

अतः इन सभी प्रकरणों को गहन जांच की आवश्यकता है और संस्थान के प्रशासन में विश्वास बहाल करने में मदद करेगी तथा दोषी अधिकारियों और व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई करें।

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