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प्रेमानंद जी महाराज का नास्तिक भी करते हैं गुणगान, 17 साल पहले फेल चु​की किडनी का कर चुके हैं नामकरण, एक का कृष्ण और दूसरे का राधा नाम रखा

इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सबसे प्रसिद्ध हिंदू धर्म गुरुओं में से एक। एक अच्छे मोटिवेशनल स्पीकर। जाति, धर्म, क्षेत्रीयता, बुद्धिमान या गूंगे आदि का वह  कोई भेद नहीं करते हैं। सभी को समान रूप से पात्र मानते हैं। सिर पर समेटी हुईं जटाएं। ललाट पर हमेशा पीला चंदन धारण करने वाले। सूरज सा तेज। मुख पर राधारानी और मन में शांति और अपार श्रद्धा का भाव।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सबसे प्रसिद्ध हिंदू धर्म गुरुओं में से एक। एक अच्छे मोटिवेशनल स्पीकर। जाति, धर्म, क्षेत्रीयता, बुद्धिमान या गूंगे आदि का वह  कोई भेद नहीं करते हैं। सभी को समान रूप से पात्र मानते हैं। सिर पर समेटी हुईं जटाएं। ललाट पर हमेशा पीला चंदन धारण करने वाले। सूरज सा तेज। मुख पर राधारानी और मन में शांति और अपार श्रद्धा का भाव। वाणी में संयम और तन पर पीले वस्त्र हमेशा धारण करने वाले। इन शब्‍दों से हम श्री हित प्रेमानंद जी महाराज की तस्‍वीर आपके दिमाग में उकेरने का प्रयास किए हैं, आज श्री हित प्रेमानंद महाराज जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। सोशल मीडिया पर भारतीय हिंदू संत प्रेमानंद महाराज के लाखों अनुयायी हैं।

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देश-दुनिया में सभी लोग आज गुरूदेव को भगवान की तरह पूजते हैं। यहां तक कि एक-दूसरे के धुर-विरोधी और नास्तिक भी इनका गुणगान करने पीछे नहीं रहते हैं। आइए आज हम आपको प्रेमानंद जी महाराज के बारे में ऐसी बातें बताते हैं जो शायद ही आप जानते हों। बता दें कि श्री हित प्रेमानंद महाराज जी की दोनों किडनी को आज से 17 साल पहले चिकित्सक फेल घोषित कर चुके हैं। इस कारण उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम कृष्ण और दूसरे का नाम राधा रख लिया है। 17 साल पहले ही डॉक्टर ने इन्हें कहा था कि आपका जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है। फिर भी ये भगवत कृपा से राधा नाम आज भी जपते जपते हैं। महाराज जी का हर दिन इनका डायलिसिस होता है। 60 साल की उम्र  में महाराज जी ये हर दिन सुबह 2 बजे वृंदावन की 4 से 5 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म यूपी के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम अनिरुद्ध पांडेय है। सबसे पहले इनके दादा ने संन्यास लिया था। महाराज जी कक्षा पांचवी से ही गीता का पाठ शुरू कर दिए थे। 13 साल की उम्र में इन्होंने ब्रह्मचारी बनने जा फैसला लिया और उसके बाद घर त्यागकर संन्यासी बन गए। संन्यासी जीवन में प्रेमानंद जी महाराज बनारस में गंगा में प्रतिदिन 3 बार स्नान करते उसके बाद भगवान शिव का ध्यान लगाते थे। इस दौरान महाराज जी कई-कई दिन भूखे रहे हैं। तब ये सिर्फ़ गंगा जल पीकर रहते थे। इसके बाद एक संत के मार्गदर्शन में प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन आकर राधावल्लभ संप्रदाय से जुड़ गए। यहां इन्होंने अपना जीवन राधा रानी श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित कर रखा है।

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि मैं स्वयं हिन्दू धर्म में अटूट आस्था रखने वाला व्यक्ति हूं। मैं पूजा करता हूं, मंदिर जाता हूं, व्रत रहता हूं, गीता पढ़ता हूं और धार्मिक प्रवचन भी सुनता हूं मगर मैं तब बहुत आहत होता हूं जब कोई व्यक्ति अपने लोभ, लालच और स्वार्थ के लिए हमारे धर्म का इस्तेमाल करता है। आस्था और श्रद्धा बेहद ही गंभीर विषय है, इन जगहों पर हमें रास्ता दिखाने वाले लोग भी उतने ही गंभीर होना ज़रूरी है। तप और त्याग के बाद ही कोई इतना काबिल हो पाता है कि जो अपने धर्म की शिक्षा को तमाम लोगों तक पहुंचाए।

प्रेमानंद जी महाराज ने भगवान कृष्ण-राधा जी का ध्यान और नि:स्वार्थ सेवा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। उनके अध्यात्मिक ज्ञान की लोकप्रियता का आलम यह है कि प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन करने के लिए भारत देश के ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग उनके पास आते हैं। वे आपने ज्ञान और दर्शन के लिए पूरी दुनिया में सम्मानित हुए हैं।

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गंगा को मानते हैं दूसरी मां

आध्यात्मिक साधक के रूप में तब उनके जीवनकाल का अधिकतम समय गंगा नदी के किनारे बीतता था। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने कभी भी एक आश्रम का पदानुक्रमित जीवन नहीं स्वीकारा। यह वह समय था, जब गंगा उनकी दूसरी मां बन चुकी थीं और वह तब यूपी में बनारस के अस्सी घाट से लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार में अन्य घाटों तक घूमा करते थे।

ये था प्रेमानंद जी के जीवन का ‘टर्निंग प्वाइंट’

प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद वृंदावन आने की कहानी बेहद चमत्कारी है। एक दिन प्रेमानंद जी महाराज से मिलने एक अपरिचित संत आए। उन्होंने कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन किया गया है, जिसमें आप आमंत्रित हैं। पहले तो महाराज जी ने अपरिचित साधु को आने के लिए मना कर दिया, लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। प्रेमानंद जी महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला देखने गए तो उन्हें आयोजन बहुत पसंद आया। यह आयोजन लगभग एक महीने तक चला और इसके बाद समाप्त हो गया।

चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी कि, अब उन्हें रासलीला कैसे देखने को कैसे मिलेगी? इसके बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे। उनसे मिलकर महाराज जी कहने लगे, मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिससे कि मैं रासलीला को देख सकूं। इसके बदले मैं आपकी सेवा करूंगा। संत ने कहा आप वृंदावन आ जाएं, वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने को मिलेगी। संत की यह बात सुनते ही, महाराज जी को वृंदावन आने की ललक लगी और तभी उन्हें वृंदावन आने की प्रेरणा मिली। इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए। इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए। वृंदावन आकर वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़े।

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भक्तों को ये देते हैं उपदेश

प्रेमानंद जी महाराज अपने भक्तों को श्री राधा रानी जी की भक्ति के मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं हर किसी को ईश्वर में विश्वास करना चाहिए, कठोर शब्द का उपयोग न करना, दूसरों का मजाक नहीं उड़ाना और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।

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