सनातन धर्म में भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना और रथयात्रा को बहुत पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु पूरे वर्ष भर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा समारोह की प्रतीक्षा करते है।
Jagannath Rath Yatra 2025 : सनातन धर्म में भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना और रथयात्रा को बहुत पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु पूरे वर्ष भर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा समारोह की प्रतीक्षा करते है। ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के भव्य रथों के निर्माण की शुरुआत अक्षय तृतीया के शुभ दिन से ही शुरु हो जाती है।अक्षय तृतीया का सीधा संबंध जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारी से भी है। इस वर्ष भी 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी की वार्षिक रथयात्रा के लिए भव्य रथों के निर्माण की परंपरागत शुरुआत हो गई है। ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा या रथ महोत्सव 27 जून, 2025 को होगा। यह उत्सव 5 जुलाई, 2025 को समाप्त होगा। इस नौ दिवसीय उत्सव में देवताओं की गुंडिचा मंदिर की यात्रा और जगन्नाथ मंदिर में उनकी वापसी शामिल है।
इस प्राचीन परंपरा का पौराणिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अक्षय तृतीया के दिन नगर भ्रमण हेतु रथ यात्रा की थी। इसी घटना को याद करते हुए हर साल इसी तिथि पर इनका रथ निर्माण आरंभ किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ जी के रथ का नाम नंदीघोष है, जिसे बनाने में कारीगर लकड़ी के 832 टुकड़ों का उपयोग करते हैं। यह भव्य रथ 16 चक्कों पर खड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 45 फीट और लंबाई 34 फीट होती है।
रथयात्रा के निर्माण प्रक्रिया
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन वार्षिक रथ यात्रा के लिए तीन रथों के निर्माण की औपचारिक शुरुआत होती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए बनने वाले रथों के निर्माण स्थल पर पवित्र अग्न्या माला ले जाकर प्रक्रिया शुरू की जाती है।
12 तरह की लकड़ियों से बनता है रथ
पुरी के भगवान जगन्नाथ की रथों में 12 तरह के पेड़ों की लकड़ियां लगती हैं। लेकिन लकड़ियों में आसन, धौरा और फासी अहम हैं। आसन की लकड़ी से रथ का दंडा बनता है। फासी से पहिए और तुंभ, धौरा से अख चढ़ेई बनते हैं।
लकड़ियों से से सालभर बनता है प्रसाद
रथ यात्रा के बाद तीनों रथों की लकड़ी भगवान की रसोई में रखी जाती है। इन लकड़ियों को जलाकर सालभर भगवान का महाप्रसाद बनता है। यह प्रसाद हर दिन 30 हजार भक्तों को दिया जाता है।
27 जून से होगी रथयात्रा की शुरुआत
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 26 जून को दोपहर 01 बजकर 25 मिनट से होगी। वहीं, तिथि का समापन 27 जून को सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 27 जून से होगी।
नंदीघोष रथ पर विराजते हैं भगवान जगन्नाथ जी
रथ के सारथी का नाम दारुक है, जबकि रक्षक गरुण होते हैं. रथ को खींचने वाली रस्सी का नाम शंखचूर्ण नागुनी है और इस पर त्रैलोक्य मोहिनी नाम की पताका फहराती है। रथ को खींचने वाले चार घोड़ों के नाम हैं- शंख, बहालक, सुवेत और हरिदश्व। जगन्नाथ जी के रथ पर वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपी कृष्णा, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रुद्र जैसे नौ देवता सवार होते हैं। इस रथ को गरुड़ध्वज और कपिध्वज के नाम से भी जाना जाता है। नंदीघोष रथ न केवल भगवान जगन्नाथ की यात्रा का माध्यम है, बल्कि यह श्रद्धा, परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय प्रतीक भी है।