हर साल ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Rath Yatra of Lord Jagannath) आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। वहीं पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 07 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर हो रहा है। वहीं, इस तिथि का समापन 08 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 59 मिनट पर होगा।
Lord Jagannath Rath Yatra: हर साल ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Rath Yatra of Lord Jagannath) आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। वहीं पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 07 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर हो रहा है। वहीं, इस तिथि का समापन 08 जुलाई, 2024 को सुबह 04 बजकर 59 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में वर्ष 2024 में जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 07 जुलाई से हो रही है।
वैसे तो भारत में कई सैकड़ों मंदिर हैं यहाँ तक की ये भी कहा जाता है की आपको इस देश में हर 1.5 किमी में कोई इंसान मिले ना मिले लेकिन एक मंदिर जरूर मिल जाएगा. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके आगे चाँद पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक तक हार मान चुके हैं.
आपको बता दे की इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के अलावा बलभद्र और सुभद्रा मुख्य देव हैं. इन देवताओं की मूर्तियों पर एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित है. इस मंदिर को विश्व का सबसे भव्य व उंचा मंदिर माना जाता है, यह चार लाख वर्गफुट और करीब 214 फुट उंचा है. इस मंदिर को खास इसलिए माना जाता है क्योंकि यहाँ आधुनिक विज्ञान भी कामयाब नहीं हो सका है.
इस मंदिर की जो सबसे हैरान कर देने वाली बात है वो ये है की मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वजा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराती है. यदि हवा दक्षिण की ओर चल रही हो तो यह उत्तर की ओर लहराती है. अब इसके पीछे क्या वजह है इस बात का पता आज तक कोई नहीं लगा सका है. यह मंदिर वक्र रेखीय आकार का है जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है. इस चक्र को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और देवप्रतिमा का चिन्ह माना जाता है.
हैरान करने वाली बात ये भी है की गुंबद के पास कभी कोई पक्षी उडता नहीं देखा गया और यहाँ तक की मंदिर के शिखर तक के पास कभी कोई पक्षी मंडराता नहीं देखा गया. अब आपको इस भव्य मंदिर की और हैरान कर देने वाली खासियत के बारे में बताते हैं जिनका तर्क आज तक विज्ञान भी नहीं कर पाया है –
बता दे की मंदिर के पास एक बहुत बड़ा समुद्र है जिसकी लहरों की आवाज बहुत तेज सुनाई पड़ती है लेकिन मंदिर के अंदर मेनगेट से एंट्री लेते समय आपको इन्हीं विशाल लहरों की जरा सी भी आवाज सुनाई नहीं पड़ेगी. इस मंदिर के रसोई घर में खाना केवल सात बर्तनों में बनाया जाता है, जिन्हें लकड़ी पर रख कर पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में सबसे पहले नीचे की जगह ऊपर वाले बर्तन का खाना पकता है, और उसके बाद नीचे के रखे हुए बर्तनों की सामग्री पकती है.
इस मंदिर में ना केवल मूर्तियां विशाल हैं बल्कि यहाँ के रसोई घर में भी बीस लाख से ज्यादा लोगों के लिए प्रसाद बनाया जा सकता है. इस मंदिर में करीब 500 रसोइए काम करते हैं और वह उत्सवों पर इतने सारे लोगों के लिए हर साल प्रसाद बनाते हैं. बता दे की इस मंदिर की मान्यता है की यदि प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए भी बनाया जाए तब भी लाखों लोगों को कम नहीं पड़ता और न ही कभी व्यर्थ जाता.
भगवान जगन्नाथ के मंदिर के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के भी मंदिर हैं. तीनों ही मूर्तिया काष्ठ की बनी हुई हैं. मंदिरों के असूल हैं की इन मूर्तियो को केवल दर्शनार्थ रखा गया है इन्हे पूजा स्वरूप नहीं पूजा जाता. बता दे की यह मूर्तिया हर बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन इनका आकार और रूप वही रहता है.