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‘Naraali’ Poornima 2025 :  ‘नारली’ पूर्णिमा के दिन मछुआरे क्यों चढ़ाते हैं समुद्र को नारियल, जानें धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

नारली पूर्णिमा एक विशेष हिंदू पर्व है। इस उत्सव को मुख्य रूप से मछुआरा समुदाय (विशेषकर महाराष्ट्र, कोंकण, गोवा और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में) श्रद्धा और भक्ति से मनाता है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

‘Naraali’ Poornima 2025 : नारली पूर्णिमा एक विशेष हिंदू पर्व है। इस उत्सव को मुख्य रूप से मछुआरा समुदाय (विशेषकर महाराष्ट्र, कोंकण, गोवा और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में) श्रद्धा और भक्ति से मनाता है।

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शुभ माना
भारत के पश्चिमी तटीय जिलों में मछुआरे के रूप में काम करते हैं और ज्यादातर इस त्योहार को मनाते हैं। नारली पूर्णिमा का त्यौहार समुद्र देवता वरुण को समर्पित है। इसे श्रावण नारली पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

इस दिन मछुआरे समुद्र से शांत रहने और सुरक्षा प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। मछुआरे नारियल को पवित्र फल मानते हैं। ऐसे में इसे समुद्र में प्रवाहित करने का अर्थ होता है – “हे समुद्र देवता! हमारे जीवन, मछली पकड़ने के कार्य और नाव की यात्रा को शुभ व सुरक्षित बनाए रखिए।

इस साल नारियल यानी नारली पूर्णिमा 9 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। श्रावण पूर्णिमा को महाराष्ट्र में, मुख्यतः तटीय एवं कोंकणी क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

सावन पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अगस्त 08, 2025 को दोपहर 2:12 बजे
सावन पूर्णिमा तिथि समाप्त – अगस्त 09, 2025 को दोपहर 1:24 बजे

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इस दिन नारियल को हल्दी-कुमकुम से पूजिए, फिर उस पर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद लाल वस्त्र या मौली बांधनी है।

इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है नृत्य और संगीत. पारंपरिक भोजन में मीठे नारियल चावल शामिल होते हैं, जिन्हें करी के साथ बड़े चाव से खाया जाता है।

उत्सव के दौरान समुद्र में वरुण देवता को नारियल अर्पित किया जाता है और जल व्यापार की सफलती का कामना की जाती है।

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