दुनियाभर में आज धूमधाम से भगवान परशुराम की जयंती मनाई जा रही है। भार्गव वंश में जन्मे भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं।
Parshuram Jayanti 2025 : दुनियाभर में आज धूमधाम से भगवान परशुराम की जयंती मनाई जा रही है। भार्गव वंश में जन्मे भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र है। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इस वर्ष यह तिथि 30 अप्रैल 2025, बुधवार यानी आज है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किए रहने के कारण ये परशुराम कहलाये। भगवान परशुराम ने योग और ध्यान के जरिए कई सिद्धियां प्राप्त की थी, इसलिए उनका आह्वान करके साहस और बल की कामना की जाती है।
शत्रु पर विजय मिलती है और सुख का वास होता है
भगवान परशुराम ने ऋषियों पर होने वाले अत्याचार का अंत किया था। दक्षिण भारत में, उडुपी के पास पवित्र स्थान पजाका में, एक प्रमुख मंदिर मौजूद है जो परशुराम का स्मरण कराता है। भारत के पश्चिमी तट पर कई मंदिर हैं जो भगवान परशुराम को समर्पित हैं। कालांतर में परशुराम जी चिरंजीवी माने गए हैं। परशुराम जी की पूजा करने वालों को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है साथ ही शत्रु पर विजय मिलती है और सुख का वास होता है।
कांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि अक्षय तृतीया के दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। पुराणों में 8 चिरंजीवी महापुरुषों का वर्णन किया गया जिनमें- हनुमान जी, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, भगवान परशुराम, ऋषि मार्कंडेय, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास और विभीषण शामिल हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा करने से शौर्य, कांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है।
भक्तों पर जल्द प्रसन्न होने वाले माने जाते हैं
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने शिव की घोर उपासना की थी। उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को धरती पर रख दिया था। इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। यही वजह है कि श्रद्धालु इस फरसे की पूजा करते है।धरती पर अन्याय और पाप के विनाश के लिए जन्मे भगवान परशुराम की जयंती पर विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना होती है। वैसे तो परशुराम जी को बेहद क्रोधी माना जाता है लेकिन विधि-विधान से पूजा करने पर वे अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और उनके जीवन में आने वाले सारे कष्टों को दूर कर देते हैं। भगवान परशुराम जी को भगवान शिव का एकमात्र शिष्य भी माना जाता है। ऐसे में वे अपने गुरु की तरह ही भक्तों पर जल्द प्रसन्न होने वाले भी माने जाते हैं।
मनोकामना पूर्ण होती है
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि मान्यता है कि भगवान परशुराम की जो भक्त सच्चे हृदय से पूजा करते है उनकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है।