झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्तिके मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है। यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं और वे मानते हैं कि मां उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मान्यता है कि असम स्थित मां कामाख्या मंदिर सबसे बड़ी शक्तिपीठ है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर ही है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है।
रांची। झारखंड की राजधानी रांची (Ranchi) से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्तिके मंदिर शक्तिपीठ (Maa Chinnamasta Devi) के रूप में काफी विख्यात है। यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं और वे मानते हैं कि मां उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मान्यता है कि असम स्थित मां कामाख्या मंदिर (Maa Kamakhya Temple) सबसे बड़ी शक्तिपीठ (Shaktipeeth) है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा (Rajrappa) स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर ही है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। स्थानियों लोगों के अनुसार वैसे तो यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के समय भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। इस मंदिर में आम दिनों में लगभग दो सौ बकरों की बलि दी जाती है और नवरात्र में इसकी संख्या तीन गुना तक बढ़ जाती है। लोगों को यहां प्रसाद के रूप में मटन (Mutton) दिया जाता है।
झारखण्ड की राजधानी रांची (Ranchi) से करीब 80 किमी की दूरी पर छिन्नमस्तिका देवी (Maa Chinnamasta Devi) का मंदिर स्थित है। इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ (Shaktipeeth) माना जाता है। इस मंदिर में देवी छिन्नमस्तिका के कटे सिर की पूजा होती है। भारत असामान्य संस्कृति, परम्पराओं और रीति रिवाजों का देश है। यहां कई असामान्य घटनाएं होती हैं, जिन्हें हम देखते हैं। बात अगर भारत के मंदिरों की करें, तो यहां के मंदिरों का इतिहास (History) अद्भुत है। हर मंदिर अपने आप में अनूठा है। कल से नवरात्रि शुरू हो रही हैं। हर जगह मां के दर्शनों के लिए जमघट लगा हुआ है। ऐसे में हम देवी मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां देवी के कटे सिर (severed head) की पूजा होती है। रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी की पूजा होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं (Wishes) पूरी हो जाती हैं। इसलिए हर साल हजारों की संख्या में भक्त यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि देवी का ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है।
छह हजार वर्ष पुरानाा है मां छिन्नमस्तिका देवी का यह मंदिर
कहा जाता है कि मंदिर 6000 साल पुराना है और देवी छिन्नमस्तिका (Maa Chinnamasta Devi) के लिए जाना जाता है। यहां देवी को प्रेम के देवता कामदेव और प्रेम की देवी रति पर खड़ी नग्न देवी के रूप में दिखाया गया है। मंदिर अपनी तांत्रिक शैली की वास्तुकला के लिए भी मशहूर है। इस मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। छिन्नमस्तिका देवी के कटे हुए सिर को देखकर लोगों के मन में सवाल उठता है कि देवी मां ने अपने कटे हुए सिर (severed head) को हाथों में क्यों उठाया हुआ है, तो इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। एक कहानी के अनुसार, एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी (The River Ganges) में स्नान करने गई, तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी। दोनों सहेलियों की भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग तक काला पड़ गया। वह मां से भोजन की मांग करने लगीं। मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वह भूख से तड़प रही थीं। माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया। जब उन्होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उने बाएं हाथ में आ गिरा। उसमें से रक्त (blood) की तीन धाराएं बहने लगीं। दो धाराओं को तो देवी मां ने सहेलियों की तरफ दे दिया और बची हुई धारा से खुद रक्त पीने लगीं।
मान्यता के अनुसार शुत्रओं पर जीत के लिए की जाती मां छिन्नमस्तिका देवी की पूजा
छिन्नमस्तिका देवी (Maa Chinnamasta Devi) की पूजा खासतौर से शत्रुओं पर जीत प्राप्त करने के लिए की जाती है। मां का रूप उग्र है। इसलिए तंत्र-मंत्र कि क्रियाओं में भी इनकी पूजा करने की परंपरा है। इन्हें बलि चढ़ाकर और तंत्र साधना के जरिए भक्त अपनी मनोकामना को पूरी करते हैं। मंदिर के भीतर देवी छिन्नमस्तिका की मूर्ति अद्भुत है। उनकी प्रतिमा कमल (Lotus) के फूल पर स्थापित है। उनकी तीन आंखेें हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में देवी अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुई हैं। देवी के पैरों के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयन अवस्था में विराजे हैं। देवी मां के बाल खुले और बिखरे हैं। उन्होंने सर्पमाला और मुंडमाला धारण किए हुई हैं। माता आभूषणों से सजी हुई नग्न अवस्था में अपने दिव्य और विशाल रूप में यहां विराजित हैं।
छिन्नमस्तिका देवी के मंदिर में बकरों की जाती है बली
रजरप्पा के छिन्नमस्तिका देवी (Maa Chinnamasta Devi) मंदिर में बकरों की बलि (sacrifice of goats) दी जाती है, खासकर दुर्गा पूजा और नवरात्र (Durga Puja and Navratri) के दौरान भक्तों द्वारा अपनी मन्नत पूरी कराने के लिए, जिसमें कुछ मान्यताओं के अनुसार रक्त बहाने के बजाय बकरे की बलि को प्रतीकात्मक रूप से लिया जाता है। लेकिन अंचभित करने की बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में मंदिर में बलि दी जाती है, लेकिन मंदिर के आस- पास आपकों कही भी बकरे नहीं देखने को मिलेंगे।
कैसे पहुंचे मां छिन्नमस्तिका देवी के दर्शन के लिए
फ्लाइट से – छिन्नमस्तिका मंदिर से निकट एयरपोर्ट रांची (Airport Ranchi) में लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित है। रांची पहुंचने के बाद, आप या तो कैब किराए पर ले सकते हैं या रजरप्पा के लिए बस पकड़ सकते हैं। जहां मंदिर स्थित है।
ट्रेन से- ट्रेन (train) से रजरप्पा पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका रामगढ़ रेलवे स्टेशन के लिए सीधी ट्रेन है जो मंदिर से लगभग 28 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से, आप रजरप्पा के लिए सीधी बस या सीधी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।