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बाल विवाह मुक्त भारत का खाका पेश करती एक किताब

किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ ने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में जुटे जमीनी कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों में यह विश्वास जगाने में सफलता पाई है कि इस बुराई का अंत निकट है। इस किताब में सुझाई गई रणनीतियों से चंद हफ्तों में ही उनके अभियान को नई धार मिली है।

By शिव मौर्या 
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नई दिल्ली। एक सामाजिक मुद्दे पर लिखी गई किताब के छपने के चंद हफ्तों के भीतर इतना व्यापक असर और इसमें बताई गई रणनीतियों पर जमीनी स्तर से लेकर सरकारी गलियारों तक अमल एक दुर्लभ घटना है। अक्टूबर के पूर्वार्ध में आई किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ ने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में जुटे जमीनी कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों में यह विश्वास जगाने में सफलता पाई है कि इस बुराई का अंत निकट है। इस किताब में सुझाई गई रणनीतियों से चंद हफ्तों में ही उनके अभियान को नई धार मिली है। प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु द्वारा लिखी गई यह किताब संयुक्त राष्ट्र के इन अनुमानों से असहमति जताती है कि देश 2050 तक कहीं जाकर बाल विवाह के खात्मे के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के करीब पहुंचेगा। इसके विपरीत यह किताब 2030 तक ही इस लक्ष्य को हासिल करने की बात करती है और इसके लिए ठोस रणनीतिक योजना और समग्र रूपरेखा पेश करती है।

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इस किताब का 11 अक्टूबर 2023 को पूरे देश में एक साथ 250 जिलों में लोकार्पण किया गया और अब यह जमीनी स्तर पर बाल विवाह के खात्मे के लिए काम रहे 160 से ज्यादा संगठनों के लिए इस लड़ाई में पथप्रदर्शक की भूमिका में है। इतना ही नहीं, विभिन्न जिलों के जिलाधिकारियों, बाल विवाह निषेध अधिकारियों और कुछ राज्यों के मुख्य सचिवों ने पत्र जारी कर विभिन्न सरकारी विभागों को इस किताब की सिफारिशों और बाल विवाह की रोकथाम के लिए सुझाई गई रणनीति पर अमल की ताकीद की है। ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन’ सतत, समग्र, समन्वित और लक्ष्य केंद्रित उपायों से एक तय समयसीमा में लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ‘पिकेट’ रणनीति के जरिए बाल विवाह के खात्मे की रूपरेखा पेश करती है।

हर साल लाखों ऐसी किशोरियां जिन्हें स्कूल में होना चाहिए था, भविष्य के सुनहरे सपने बुनने चाहिए थे, बाल विवाह के नर्क में धकेल दी जाती हैं जहां उनके हिस्से में आता है सिर्फ बलात्कार, उत्पीड़न और शोषण। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में रोजाना 17 साल से कम उम्र की 4,442 लड़कियों को शादी का जोड़ा पहना दिया जाता है। उधर, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रपट के अनुसार देश में रोजाना बाल विवाह के सिर्फ तीन मामले ही थाने पहुंच पाते हैं। जनगणना और एनसीआरबी के आंकड़ों में जमीन-आसमान का यह फर्क चिंता का विषय है। लेकिन इस किताब में बताई गई व्यावहारिक रणनीतियां और ईकोसिस्टम यानी पारिस्थितिकी स्तरीय दृष्टिकोण की पैरोकारी यह भरोसा जगाती है कि भारत के लिए बाल विवाह की मौजूदा 23.5 फीसदी दर को 2030 तक 5.5 फीसदी तक लाना असंभव नहीं है। यह जादुई संख्या वो देहरी है जहां से लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता खत्म हो जाएगी और बाल विवाह का चलन अपने आप खत्म होने लगेगा।

‘पिकेट’ रणनीति सरकार, समुदायों, गैर सरकारी संगठनों से और बाल विवाह के लिहाज से संवेदनशील बच्चियों के लिए नीतियों, निवेश, संम्मिलन, ज्ञान-निर्माण और एक पारिस्थितिकी जहां बाल विवाह फल-फूल नहीं पाए और इसकी रोकथाम के लिए निरोधक और निगरानी तकनीकों पर एक साथ काम करने का आह्वान करती है। ‘पिकेट’ रणनीति बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई को एक रणनीतिक औजार मुहैया कराने के साथ-साथ तमाम हितधारकों के विराट लेकिन बिखरे हुए प्रयासों को एक ठोस आकार और दिशा देती है।

‘व्हेन चिल्डेन हैव चिल्ड्रेन’ ने ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान में एक नई उर्जा का संचार किया है। बाल विवाह के अभिशाप को खत्म करने के लिए देश भर के 160 से ज्यादा गैरसरकारी और नागरिक संगठन ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के तहत एक मंच पर आए हैं और बाल विवाह की सबसे ज्यादा दर वाले देश के 300 जिलों में इसके खिलाफ अभियान चला रहे हैं। इन सभी संगठनों और तमाम अन्य हितधारकों ने किताब में पेश किए गए रोडमैप और व्यवहार्य रणनीतियों की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए इसे बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक ऐसे सशक्त हस्तक्षेप के रूप में स्वीकार किया है जो न सिर्फ बच्चों के साथ हो रहे अपराध को विमर्श के केंद्र में लाती है, बल्कि इसके समाधान की एक ठोस रूपरेखा भी पेश करती है। इसलिए ‘व्हेन चिल्डेन हैव चिल्ड्रेन’ को महज एक किताब के बजाय एक जीवंत और सामयिक दस्तावेज के तौर पर देखना उचित होगा, जो सामाजिक बदलाव के लिए एक पथप्रदर्शक का भी काम करती है।

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