उत्तराखंड में आज से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) आज से लागू हो गया है, जिसके बाद कई नियमों में बदलाव हो गया है और कई प्रथाएं पूरी तरह बंद हो गई हैं। बता दें कि उत्तराखंड देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
नई दिल्ली: उत्तराखंड में आज से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) आज से लागू हो गया है, जिसके बाद कई नियमों में बदलाव हो गया है और कई प्रथाएं पूरी तरह बंद हो गई हैं। बता दें कि उत्तराखंड देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। गौरतलब है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड शादी, तलाक, मेंटिनेंस, संपत्ति का अधिकार, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करता है। उत्तराखंड में UCC लागू होने से हलाला और इद्दत जैसी प्रथा बंद हो गई हैं।
इद्दत-हलाला को इस तरह किया परिभाषित
यूसीसी बिल में महिला के दोबारा विवाह करने (चाहे वह तलाक लिए हुए उसी पुराने व्यक्ति से विवाह हो या किसी दूसरे व्यक्ति से) को लेकर शर्तों को प्रतिबंधित किया गया है। संहिता में माना गया कि इससे पति की मृत्यु पर होने वाली इद्दत और निकाह टूटने के बाद दोबारा उसी व्यक्ति से निकाह से पहले हलाला यानी अन्य व्यक्ति से निकाह व तलाक का खात्मा होगा। यूसीसी में हलाला का प्रकरण सामने आने पर तीन साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
क्या है हलाला?
इस्लाम में हलाला एक प्रथा है, जिसमें अगर किसी महिला को उसका शौहर (पति) तलाक दे देता है और उसके बाद महिला, उसी शौहर से दोबारा निकाह (शादी) करना चाहे तो महिला को किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और फिर उससे भी तलाक लेना होगा। इसके बाद ही महिला का अपने पूर्व शौहर से दोबारा निकाह हो सकता है। इसी प्रथा को हलाला कहते हैं।
इद्दत प्रथा क्या है?
इद्दत प्रथा के तहत एक महिला अपने शौहर की मौत या उससे तलाक के बाद कुछ समय तक किसी अन्य पुरुष के साथ निकाह नहीं कर सकती। इद्दत की अवधि अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होती है। अगर कोई प्रेगनेंट महिला विधवा होती है या तलाक लेती है तो उसकी इद्दत का समय तब तक रहता है, जब तक वह बच्चे को जन्म ना दे दे। इद्दत के दौरान महिलाओं का दूसरे पुरुषों से पर्दा करना भी जरूरी है। इस दौरान महिला के सजने और संवरने पर भी पाबंदी होती है।
धर्म का जिक्र नहीं, रुढ़ि, प्रथा व परंपरा से ऊपर
देश के पहले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के बिल में किसी धर्म विशेष का जिक्र तो नहीं, लेकिन कई नियमों के बदलाव में रूढ़ि, परंपरा और प्रथा को खत्म करने का आधार बनाया गया है। इद्दत, हलाला को भी प्रत्यक्ष तौर पर कहीं नहीं लिखा गया। हालांकि, एक विवाह के बाद दूसरे विवाह को पूरी तरह से अवैध करार दिया गया है।