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Chaitra Navratri 2024 :  चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा , संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है

चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है और इस दिन मां भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अराधना करने से आत्मविश्वास, आयु, आरोग्य, सौभाग्य, अभय आदि की प्राप्ति होती है। माता ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है और इस दिन मां भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अराधना करने से आत्मविश्वास, आयु, आरोग्य, सौभाग्य, अभय आदि की प्राप्ति होती है। माता ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है।

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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
मां ब्रह्मचारिणी के हवन में सामग्री के साथ धूप, कपूर, लौंग, सूखे मेवा, मिश्री-मिष्ठान, देसी घी के साथ आहुति देकर पूजन किया जाता है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल है। साधक यदि भगवती के इस स्वरूप की आराधना करते हैं, तो उनमें तप करने की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग
मां ब्रह्मचारिणी के इस स्वरुप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए।
रंग
मां ब्रह्मचारिणी को भी सफेद रंग ही पसंद है। मां की पूजा में पीले रंग के फल, फूल आदि का प्रयोग करें।

मां ब्रह्मचारिणी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी पुत्री बनकर पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लिया था। वह भगवान शंकर को पति के रूप में पाना चाहती थीं और उन्होंने अपनी यह इच्छा नारद मुनि के सामने व्यक्त की। नारद जी ने उन्हें घोर तपस्या करने की सलाह दी। नारद जी सलाह के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने कई 1000 वर्षों तक केवल फल व फूल खाकर तपस्या की। इसके अलावा उन्होंने 10 वर्षों तक जमीन पर बैठकर तप किया। अपने कठोर तप की वजह से उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। मान्यता है कि कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करने से देवता प्रसन्न हुए और मनोकामना पूर्ति का वरदान मिला।

मां ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः’ का 108 बार जाप कर सकते हैं। इसके अलावा ‘ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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