संसद (Parliament) की एक समिति ने निर्वाचन आयोग (Election Commission) सहित विभिन्न हितधारकों के परामर्श से एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच की थी। इस पर अधिकारियों का कहना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव (Lok Sabha-Assembly Elections) एक साथ कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक संशोधन (Five Constitutional Amendments) करने पड़ेंगे।
नई दिल्ली। संसद (Parliament) की एक समिति ने निर्वाचन आयोग (Election Commission) सहित विभिन्न हितधारकों के परामर्श से एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच की थी। इस पर अधिकारियों का कहना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव (Lok Sabha-Assembly Elections) एक साथ कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक संशोधन (Five Constitutional Amendments) करने पड़ेंगे। इसके साथ ही बड़ी संख्या में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) व पेपर ट्रेल मशीनों की जरूरत होगी, जिन पर ‘हजारों करोड़ रुपये’ की लागत आएगी।
अधिकारियों ने बताया कि समिति ने इस संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए ‘व्यावहारिक रूपरेखा और ढांचा’ तैयार करने के लिए यह मामला अब विधि आयोग के पास भेजा गया है। अधिकारियों ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने को भारी बचत होगी और बार-बार चुनाव कराने में प्रशासनिक और कानून व्यवस्था मशीनरी की ओर से किए जाने वाले प्रयासों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकेगा। यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को उनके चुनाव अभियानों में काफी बचत कराएगा।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की संभावना की खुली राह
उल्लेखनीय है कि सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation One Election) की संभावनाएं तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Former President Ramnath Kovind) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इससे लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) का समय आगे बढ़ने की संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं, ताकि इन्हें कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही संपन्न कराया जा सके। अधिकारियों ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों (उपचुनावों सहित) के परिणामस्वरूप आदर्श आचार संहिता लंबे समय तक लागू होती है और इसका विकासात्मक और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
एक साथ चुनाव के लिए करने पड़ेंगे ये संशोधन
उन्होंने यह भी कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होगी। इनमें संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा भंग करने से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और अनुच्छेद 356 जो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है।
राजनीतिक दलों की सहमति की भी होगी जरूरत
इसके साथ ही भारत की शासन प्रणाली के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति की भी आवश्यकता होगी। इसके अलावा, यह जरूरी है कि सभी राज्य सरकारों की आम सहमति प्राप्त की जाए। इसके लिए अतिरिक्त संख्या में ईवीएम और वीवीपीएटी (पेपर ट्रेल मशीन) की भी आवश्यकता होगी, जिसकी लागत ‘हजारों करोड़ रुपये’ होगी।
मशीनों की खरीद के लिए हजारों करोड़
एक मशीन का जीवन केवल 15 साल का होता है, इसका मतलब यह होगा कि एक मशीन का उपयोग उसके जीवन काल में लगभग तीन या चार बार किया जा सकेगा। उन्हें हर 15 साल में बदलने की आवश्यकता होगी। इस व्यापक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की भी आवश्यकता होगी। विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला था कि दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव पांच साल के लिए एक साथ होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
यहां होते हैं एक साथ चुनाव
स्वीडन में, संसद (रिक्सडैग) और प्रांतीय विधायिका/ काउंटी परिषद (लैंडस्टिंग) और स्थानीय निकायों / नगरपालिका विधानसभाओं (कोम्मुनफुलमाक्टिगे) के चुनाव एक निश्चित तारीख पर आयोजित किए जाते हैं। ब्रिटेन में, संसद का कार्यकाल निश्चित अवधि के संसद अधिनियम, 2011 द्वारा शासित होता है।