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सुप्रीम कोर्ट ने विकास के नाम पर विनाश पर जताई चिंता,कहा-वो दिन दूर नहीं जब देश के नक्शे से गायब हो जाए हिमाचल प्रदेश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में पर्यावरण के बिगड़ते हालात पर गंभीर चिंता जताई है। इसके साथ ही चेतावनी दी है कि अगर स्थिति को तुरंत नहीं संभाला गया, तो हो सकता है कि यह खूबसूरत राज्य देश के नक्शे से ही "हवा में गायब" हो जाए।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में पर्यावरण के बिगड़ते हालात पर गंभीर चिंता जताई है। इसके साथ ही चेतावनी दी है कि अगर स्थिति को तुरंत नहीं संभाला गया, तो हो सकता है कि यह खूबसूरत राज्य देश के नक्शे से ही “हवा में गायब” हो जाए। जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh)  में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। यहां जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का असर अब साफ-साफ और खतरनाक रूप से दिखाई दे रहा है।

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सरकार को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्य और केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सिर्फ पैसा कमाना ही सब कुछ नहीं होता। आप पर्यावरण और प्रकृति को दांव पर लगाकर राजस्व नहीं कमा सकते। कोर्ट ने कहा कि भगवान न करें ऐसा हो, लेकिन अगर चीजें ऐसे ही चलती रहीं तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh)  देश के नक्शे से गायब हो सकता है। बता दें कि यह सुनवाई 28 जुलाई को हुई, जब कोर्ट हिमाचल हाई कोर्ट (Himachal High Court) के एक फैसले के खिलाफ याचिका पर विचार कर रहा था।

तबाही के लिए इंसान जिम्मेदार, प्रकृति नहीं

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने साफ कहा कि हिमाचल में हो रही तबाही के लिए सिर्फ प्रकृति को दोष देना गलत है। असल में इसके लिए इंसान जिम्मेदार हैं। पहाड़ों का लगातार खिसकना, सड़कों पर भूस्खलन, घरों और इमारतों का ढहना, यह सब इंसानी गतिविधियों का नतीजा है।

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कोर्ट के मुताबिक, इस विनाश के पीछे मुख्य कारण हैं।

बड़े-बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट (बिजली बनाने वाले डैम)।

चार-लेन वाली सड़कें बनाने के प्रोजेक्ट।

जंगलों की अंधाधुंध कटाई।

बिना सोचे-समझे बनाई जा रही बहुमंजिला इमारतें।

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विकास के नाम पर विनाश

कोर्ट ने कहा कि हिमाचल अपनी 66 फीसदी से ज़्यादा हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन इंसानी लालच और लापरवाही के कारण यह खजाना अब खतरे में है। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर बिना सही योजना के सड़कें, सुरंगें और इमारतें बनाई जा रही हैं। इससे यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं (Natural Disasters) के लिए और भी ज़्यादा संवेदनशील हो गया है।

अनियंत्रित पर्यटन ने भी राज्य के पर्यावरण पर भारी दबाव डाला है। कोर्ट ने कहा कि अगर इसे नहीं रोका गया, तो यह राज्य के पर्यावरण और समाज, दोनों को बर्बाद कर सकता है।

अब क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने सिर्फ चेतावनी ही नहीं दी, बल्कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए खुद एक जनहित याचिका (PIL) शुरू कर दी है। कोर्ट ने हिमाचल सरकार से पूछा है कि इस संकट से निपटने के लिए उनके पास क्या एक्शन प्लान है। केंद्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि राज्य में पर्यावरण को और नुकसान न पहुंचे।

कोर्ट ने कहा कि जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई मुश्किल है, लेकिन ‘कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है। इस मामले पर अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी। यह सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  की तरफ से एक बहुत बड़ी और सीधी चेतावनी है कि अगर हिमाचल को बचाना है तो विकास के मॉडल पर फिर से सोचने और पर्यावरण को प्राथमिकता देने का वक्त आ गया है।

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