वैश्विक मंच पर बिहार की पारंपरिक विरासत (Traditional heritage of Bihar) को पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है।
Bihar Products GI Tag : वैश्विक मंच पर बिहार की पारंपरिक विरासत (Traditional heritage of Bihar) को पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। यहां की धरती पर कई ऐसे उत्पाद है। ,जिनका स्वाद लाजवाब हैं और दूर देश तक राज्य की सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान (Cultural and traditional identity of the state) भी हैं। अब इन उत्पादों को दुनिया के सामने लाने की तैयारी जोरों पर है। बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (बीएयू) की टीम इन खास प्रोडक्ट्स को जीआई (Geographical Indication) टैग दिलाने के लिए तेजी से काम कर रही है।
विदेशों में जबरदस्त मांग
बिहार के 5 खास प्रोडक्ट्स जर्दालू आम, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, कतरनी चावल, मिथिला मखाना और मगही पान को GI टैग मिल चुका है। इससे इनकी मांग बढ़ी है और किसानों को सीधा फायदा हुआ है। मखाना जैसे प्रोडक्ट की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। विदेशों में इसकी जबरदस्त मांग है।
प्रोडक्ट्स को GI टैग दिलाने कि तैयारी
बीएयू अब ऐसे 59 और पारंपरिक उत्पादों की पहचान कर उन्हें GI टैग दिलाने में लगा है। बीएयू के कुलपति डॉ. दुनियाराम सिंह का मानना है कि बिहार की विरासत (Heritage of Bihar) को नई पहचान मिलनी चाहिए। इसी सोच के साथ इस पहल की शुरूआत की गई है ताकि राज्य के कुछ पारंपरिक उत्पाद (Traditional product) समय के साथ गुम हो गए हैं, उन्हें दोबारा जीवित कर के अंतरराष्ट्रीय पहचान (international recognition) दिलाया जा सके। दर्जनभर प्रोडक्ट्स के लिए GI टैग की फाइलें GI कार्यालय में भेज दी गई हैं। वहीं एक दर्जन और प्रोडक्ट्स, प्रोसेस के आखिरी चरण में हैं। इसके बाद तीसरे फेज में 30 और प्रोडक्ट्स को GI टैग दिलाने कि तैयारी की जाएगी।
बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (Bihar Agricultural University) में नाबार्ड की मदद से GI फैसिलिटी सेंटर खोला गया है। डॉ. ए.के. सिंह की अगुवाई में वैज्ञानिकों की एक टीम काम कर रही है। सबसे पहले उन उत्पादों को सेलेक्ट किया जाता है जो किसी खास क्षेत्र या जिले से जुड़े होते हैं। फिर खासियत, डाक्यूमेंट्स और जरूरी जानकारी इकट्ठा कर GI रजिस्ट्रेशन के लिए फाइल तैयार होती है। अगर कोई आपत्ति नहीं आती, तो उस प्रोडक्ट को GI टैग मिल जाता है।