‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु ॥’ (अथर्ववेद) यह उद्घोष भारतीय जीवनदर्शन का सार है। हमारी संस्कृति ने सिखाया है कि धरती केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, वह हमारी मां है। उसकी छाया में ही जीवन पनपता है। जब मां पीड़ा में हो, उसकी सांसें
