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कचरा प्रबंधन की विफलता बना रही है शहरों को आपदा का गढ़, UNESCO में उठे सवाल

भारत के शहरों में म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW) के गलत प्रबंधन से कई खतरे बढ़ते जा रहे हैं। सबसे ज्यादा स्वास्थ्य, बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। आने वाले समय में और ज्यादा समस्या बढ़ सकती है। हालांकि, सही नीतियों और निवेश से आपदाओं को टाला जा सकता है।

By टीम पर्दाफाश 
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नई दिल्ली। भारत के शहरों में म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW) के गलत प्रबंधन से कई खतरे बढ़ते जा रहे हैं। सबसे ज्यादा स्वास्थ्य, बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। आने वाले समय में और ज्यादा समस्या बढ़ सकती है। हालांकि, सही नीतियों और निवेश से आपदाओं को टाला जा सकता है। मुंबई, दिल्ली, लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर समेत अन्य जगहों पर सॉलिड वेस्ट के गलत प्रबंधन के कारण स्थितिया बिगड़ती जा रही हैं।

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वहीं, इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटी एंड सेफ्टी मैनेजमेंट (IISSM) द्वारा संविधान क्लब ऑफ इंडिया में चार दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें कई ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए जो हैरान करने वाले हैं। दरअसल, भारत के शहरों में म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW) का गलत प्रबंधन न केवल स्वच्छता संकट है, बल्कि यह बाढ़, भूस्खलन और स्वास्थ्य आपदाओं को भी जन्म दे रहा है। हालांकि, अब समय आ गया है कि, कचरे को “समस्या” नहीं, “संभावना” के रूप में देखा जाए। सही नीतियों और निवेश से हम आपदाओं को टालने और स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने की तैयारी की जाए।

मुंबई में भी कचरा प्रंबधन की विफलता का गंभीर परिणाम देखने को मिला था। मुंबई में आई 2005 की बाढ़ में इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ा था। सैकड़ों लोगों की जान चली गयी थी। दरअसल, 944 मिमी बारिश में कचरे ने नालों को जाम कर दिया था,​ जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ा था। इसी तरह से दिल्ली में भी कचरा प्रंबधन की विफलता का परिणाम देखने को मिला था। दिल्ली के घा​जीपुर लैंडफिल से मीथेन रिसाव और आग के हादसे होते हैं। 2017 में भूस्खलन से 2 लोगों की जान भी गयी थी।

इसी तरह से प्रयागराज में हुए कुंभ के दौरान भी कचरा प्रबंधन में घोर लापरवाही उजागर हुई। अपने करीबी कंपनी को कचरा प्रबंधन का टेंडर देकर बड़ा खेल किया गया। दरअसल प्रयागराज में काम करने वाली कंपनी ने कचरे को गंगा नदी के साथ ही गड्ढों में डाल दिया, जिसके कारण कचरा प्रबंधन को लेकर सवाल खड़े हुए। 20,000 वर्ग मीटर कम्पोस्ट पैड में से केवल 5,000 वर्ग मीटर का उपयोग। 3 लाख टन कचरा बिना ट्रीटमेंट के dump, जिससे 12,000 टन मीथेन उत्सर्जन का खतरा बढ़ा। हालांकि, स्थानीय वेस्ट-टू-एनर्जी (WtE) संयंत्र लगाकर इस कचरे से बिजली बनाई जा सकती थी। लेकिन कंपनी ने कचरा प्रबंधन कंपनी में घोर लापरवाही बरती गई। इसकी जानकारी होने के बाद भी अधिकारियों ने कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं की।

यूपी में कचरा प्रबंधन में भ्रष्टाचार
उत्तर प्रदेश में कचरा प्रबंधन का काम करने वाली कंपनियों के ऊपर कई गंभीर आरोप लगे हैं। इन पर भ्रष्टाचार समेत नियमों के विपरित काम करने का आरोप है। ज्यादातर कंपनियों कचरा प्रबंधन की बजाए उसे गड्ढों और नदियों में बहाकर स्वास्थ्य और पर्यावरण से बड़ा खिलवाड़ कर रही हैं। इन कंपनियों को टेंडर दिलाने में नगर आयुक्त और प्रमुख सचिव तक भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इसके साथ ही अपने करीबियों कंपनियों के हर गलत काम पर भी पर्दा डाल रहे हैं।

कचरा प्रबंधन को आपदा प्रबंधन से जोड़ें
. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) में कचरा-जनित आपदाओं (लैंडफिल आग, नालों में जमाव) को शामिल करें।
. स्मार्ट सिटी फंड्स को डी-सेंट्रलाइज्ड WtE संयंत्रों में निवेश करें।
. कॉन्ट्रैक्टरों की जवाबदेही तय करें (प्रयागराज जैसे मामलों में कार्रवाई) की जाए।

 

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