उत्तर प्रदेश में कचरा प्रबंधन के नाम पर जमकर खेल किया जा रहा है। अफसरों की चेहती कंपनियों को काम दिया जा रहा है, जबकि गुणवत्ता पूर्वक काम करने वाली कंपनियों को दरकिनार कर दिया जा रहा है, जिसके कारण कचरा प्रबंधन का काम सिर्फ कागजों में ही सही से संचालित हो रहा है और इसकी जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कचरा प्रबंधन के नाम पर जमकर खेल किया जा रहा है। अफसरों की चेहती कंपनियों को काम दिया जा रहा है, जबकि गुणवत्ता पूर्वक काम करने वाली कंपनियों को दरकिनार कर दिया जा रहा है, जिसके कारण कचरा प्रबंधन का काम सिर्फ कागजों में ही सही से संचालित हो रहा है और इसकी जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में कचरा प्रबंधन का काम करने वाली कंपनियां अफसरों के भरोसे चल रही हैं। अफसरों के चेहती फर्म को टेंडर दिया जाता है। चाहे वो कंपनी ब्लैकलिस्ट हो या फिर उसके पास काम करने का अनुभव न हो। ये कंपनियां हजारों करोड़ों का काम प्रदेश में नियमों के विपरित कर रही हैं। कागजों में ही इनके काम चल रहे हैं। हाल के दिनों में ही कई कंपनियों का खेल उजागर हुआ था, जो ब्लैकलिस्ट होने के बाद भी यूपी के कई शहरों में हजारों करोड़ का काम कर रही हैं।
हालांकि, इसके विपरित प्रदेश में प्रयागराज और मुरादाबाद में वर्षों तक सफलता से कचरे को संसाधित करने वाली कंपनी को अधिकारियों की भेंट चढ़ना पड़ा है। मुरादाबाद के नगर आयुक्त दिव्यांशु पटेल और प्रमुख सचिव अमृत अभिजात की साजिश का शिकायर ये कंपनी हो गयी और आज वित्तीय अस्थिरता और अनुबंध समाप्ति की कानूनी लड़ाई में उलझ चुकी है।
बताया जा रहा है कि, जो कंपनी अधिकारियों की भेंट चढ़ी वो 3 वर्षों में भारत में 20 CBG प्लांट्स और 10 RDF-टू-फ्यूल प्लांट्स स्थापित करने के लिए 1000 करोड़ रुपये निवेश की योजना बना रही थी। नॉर्वे की कंपनी के साथ हुए जॉइंट वेंचर के तहत मुरादाबाद में पहला प्लांट तैयार भी किया जा रहा था। यूरोपीय निवेशकों द्वारा की गई FDI, इंडियन ऑयल के साथ हुए समझौते, मिट्टी परीक्षण, तकनीकी वैटिंग, बाउंड्री वॉल तक बन चुकी थी-पर अचानक नगर निगम मुरादाबाद ने बिना उचित नोटिस और वैधानिक प्रक्रिया के कंपनी का 30 वर्षीय अनुबंध रद्द कर दिया।
सूत्रों की माने तो जो कंपनी अधिकारियों की भेंट चढ़ी है, उसका मुरादाबाद में करीब 15 करोड़ से ज्यादा का भुगतान भी रोक दिया गया था और उस कंपनी के CEO को 14 बार दिल्ली से मुरादाबाद बुलाकर घंटों इंतज़ार कराने के बाद मिलने से इनकार किया गया। इसके बाद कंपनी ने प्रमुख सचिव अमृत अभिजात से न्याय की गुहार लगाई। बैठकें तय हुईं, लेकिन चार बार बिना कारण रद्द कर दी गईं।