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अगर जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो याद रखिये सुंदरकांड में बताई हनुमान जी को बातो को

By टीम पर्दाफाश 
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नई दिल्ली: श्रीरामचरित मानस (Ramayan) का पांचवां अध्याय सुंदरकांड को कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे, हिन्दू धर्म के अनुसार श्रीरामचरित मानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने बाला अध्याय इसको माना गया है। इस सुंदरकांड में हनुमान जी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन प्रमुखता से किया गया है। और इसी सुंदरकांड के माध्यम से मनुष्य जीवन के लिए सफलता के कई नियमो को बताया गया है। श्रीरामचरित मानस (Ramayan) के सुंदरकांड भाग में हनुमान जी ने बताया है, कि मनुष्य अपने जीवन में सफलता को कैसे प्राप्त कर सकता है।

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हनुमान जी ने सुंदरकांड के माध्यम से बताया की मनुष्य सफलता कैसे प्राप्त करे, सफलता के साथ क्या किया जाये और सफलता मिलने के बाद क्या किया जाय? महान हिन्दू धर्म के महान सुंदरकांड भाग में मनुष्य जीवन से जुड़े हर पहलु का बर्णन बड़े ही प्रमुखता से किया गया है। सुंदरकांड की हर दोहे, चौपाई और शब्द में गहन आध्यात्म छिपा है, जिससे जीवन की हर समस्या का सामना किया जा सकता है।

श्रीरामचरित मानस (Ramayan) के सुंदरकांड भाग में बताया गया है, कि रावण ने अपने दरबार में हनुमानजी को मारने का फैसला ले चुका था। जब रावण को इस काम के लिए रोका गया तो उसने पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया। सुंदरकांड के कुछ अंश हम यंहा आपके लिए प्रदर्शित कर रहे है, जो जीवन के मूल मन्त्र से जुड़े हुए है।

सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।।

रावण ने भगवान् हनुमान को संज्ञान लेते हँसते हुए कहा- ‘अच्छा, तो बंदर को अंग-भंग करके भेज दिया जाए।‘

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जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउं मैं तिन्ह कै प्रभुताई।

जिनकी इसने बहुत बढ़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता तो देखूं।

इस चौपाई का अर्थ कुछ इस तरह है- ‘रावण बार बार हँसता था, क्योंकि वह अपने भय को छिपाना चाहता है। रावण हनुमान जी को डराने के लिए कई प्रयत्न कर रहा था लेकिन दरवार में रावण और हनुमानजी भय और निर्भयता की स्थिति में खड़े हुए हैं।

रावण ने हनुमान जी को डराते हुए कहा- ‘में इस बानर के मालिक की प्रभुता(ताकत ) को देखना चाहता हूँ।’ जिसका यह गुणगान किये जा रहा है।

रावण इस बात से भलीभांति परिचित था, कि प्रभु श्री राम से बैर उसकी मृत्यु का कारण बन सकती है। लेकिन बह अपने सामर्थ्य से अंहकार से घिरा हुआ था, श्रीराम की सामर्थ्य देखने के पीछे उसे अपनी मृत्यु दिख रही थी, जबकि हनुमानजी मृत्यु के भय से मुक्त थे।

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सुंदरकांड के अनुसार (Ramayan)
हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका की तरफ श्री राम का आशीर्वाद लेकर रवाना हो गए। पवनपुत्र हनुमान बायु की तेज गति के साथ लंका में प्रवेश करते है, लंका में प्रवेश के दौरान उनका परिचय विभीषण से होता है। विभीषण लंका में एक मात्र प्रभु श्री राम के अनुयायी थे। उन्ही ने माता सीता के अपहरण की खबर हनुमान जी को बताई।

हनुमान जी विभीषण के साथ लंका नरेश रावण के दरवार में भगवान् श्री राम का दूत बन कर जाते है। हनुमान जी रावण को दूत की हैसियत से समझाने व श्री राम भक्त होने की हैसियत से डराने की भी कोसिस करते है। (डराने से सुंदरकांड में बर्णन है, की मनुष्य को अपने शत्रु के साथ साम और भय की नीति भी अपनानी चाहिए ) रावण हनुमान जी के बानर रूप का मजाक उड़ाते हुए, उन्हें बंधक बनाने का आदेश देता है। रावण के आदेश पर विभीषण रावण को समझने की कोसिस करता है, लेकिन रावण अंहकार बस अपने सगे भाई की बात को दरकिनार कर उसको दुत्कार देता है।

बंधक बने हनुमान जी ने रावण से कहा- ‘हे रावण तेरे पास अब भी बक्त है, कि तू जाकर मर्यादा पुरुसोत्तम प्रभु श्री राम से माफ़ी मांग ले। अपने अंहकार से तुम खुद अपने सर्वनाश का कारन बनोगे। हनुमान जी की बात सुन रावण को भय लगाने लगता है, उसे अपने कुल के समाप्त होने की चिंता सताने लगने लगती है। लेकिन उसके इस भय के ऊपर उसका अंहकार भारी पड़ता है। रावण हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है। हनुमाना जी जली पूंछ से पूरी सोने(स्वर्ण) की लंका में आग लगा देते है। देखते ही देखते पूरी लंका जलकर राख होने लगती है।

हनुमान जी माता सीता की खोजखबर लेकर प्रभु श्री राम के पास बापिस लौट आते है। और प्रभु श्री राम को रावण की कार गुजारियो से परिचित करवाते है। रावण के अंहकार ने उसके पुरे कुल का नाश कर दिया। और खुद रावण उसी अंहकार की बजह से प्रभु श्री राम के हांथो मारा गया।

सुंदरकांड के अनुसार– शत्रु के लिए जीवन में एक बार सुधरने का मौका देना चाहिए, उसके अंहकार को समाप्त कर उसके लिए सही रास्ता चुनने का एक मौका जरूर देना चाहिए। हनुमाना जी जब कैद में थे, तो रावण भयभीत था। क्यूंकि उसको अपने कुल की चिंता सताने लगी थी। लेकिन हनुमान जी उस बक्त भी योजना बना रहे थे। दोस्तों हमें जीवन में जब भी कोई विशेष काम करना हो तो निर्भयता और मन को शांत बनाए रखना चाहिए। और शत्रु के सामने डरना नहीं बल्कि उसको डराना चाहिए। और हमेशा किसी मुसीबत से बच निकलने के लिए एक प्लान को तैयार व मौके पर योजनाए बनाते रहना चाहिए।

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