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Raghuraj Pratap Singh ‘Raja Bhaiya’ jeevan parichay : सियासत के माहिर खिलाड़ी राजा भैया रिश्ते में कैसे खा गए मात? कुछ ऐसा रहा अब तक उनका दिलचस्प सियासी सफर

Raghuraj Pratap Singh 'Raja Bhaiya' jeevan parichay : कुंवर रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' (Kunwar Raghuraj Pratap Singh 'Raja Bhaiya' ) ने साल 1993 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले प्रतापगढ़ जनपद स्थित भदरी रियासत के उत्तराधिकारी राजा भैया मात्र 24 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे।

By संतोष सिंह 
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Raghuraj Pratap Singh ‘Raja Bhaiya’ jeevan parichay : कुंवर रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ (Kunwar Raghuraj Pratap Singh ‘Raja Bhaiya’ ) ने साल 1993 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले प्रतापगढ़ जनपद (Pratapgarh District) स्थित भदरी रियासत के उत्तराधिकारी राजा भैया मात्र 24 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे। ये वो दौर था, जब यूपी की राजनीति मंडल बनाम कमंडल में मोटे तौर पर बंटी थी। ऐसे सियासी माहौल में राजा भैया ने अपनी स्वतंत्र पहचान कायम की। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1993 से लेकर 2022 तक यूपी की सियासत में कई दलों के पक्ष में तूफानी जनादेश आया, लेकिन इनमें से किसी में इतनी ताकत नहीं थी, जो राजा भैया को विधानसभा पहुंचने से रोक सके।

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साल 1993 से लेकर अब तक यूपी के प्रतापगढ़ जिले (Pratapgarh District) के कुंडा विधान सभा क्षेत्र (Kunda Assembly Constituency) से अब तक लगातार निर्दलीय विधायक निर्वाचित हो रहे हैं। रघुराज प्रताप सिंह कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव व अखिलेश मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके है। बसपा शासन काल में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती व्यक्तिगत रंजिश के तहत उन्हें प्रताड़ित करने के लिए जेल भेज दिया था। इसके बाद भी राजा भैया ने हार नहीं मानी और लगातार संघर्ष करते रहे। इसके बाद हुए चुनाव में सपा सरकार (SP government) में कैबिनेट मंत्री भी बने।

यूपी जैसे विशाल प्रदेश में अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने वाले रघुराज प्रताप सिंह के बारे में जितने किस्से और कहानियां अफवाहों के शक्ल में उड़ती हैं, भारत में शायद ही किसी राजनेता के बारे में ऐसा सुनने को मिलता होगा। साल 2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में राजा भैया पहली बार किसी दल के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे थे। जनता एकबार फिर उनपर अपना भरोसा जताते हुए सातवीं बार विधानसभा पहुंचाया। तो आइए एक नजर शाही घराने से आने वाले इस राजनेता के अब तक के सफर पर डालते हैं।

राजा भैया का परिवार

राजा भैया जिनका एक नाम तूफान सिंह भी है, का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को भादरी रियासत में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय प्रताप सिंह और माता का नाम मंजुल राजे है। उनकी मां भी राजघराने से आती हैं। उनके पास पैतृक संपत्ति समेत लगभग 200 करोड़ से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति होने का अनुमान है। राजा भैया अपने माता-पिता की अकेली संतान हैं। उनकी पत्नी भानवी कुमारी बस्ती शाही घराने से आती हैं। राजा भैया के चार बच्चे हैं, दो बेटे और दो बेटियां। राघवी कुमारी उनकी सबसे बड़ी बेटी है। उनकी दूसरी बेटी का नाम बृजेशवरी है। बेटों का नाम शिवराज प्रताप सिंह और बृजराज प्रताप सिंह है। राजा भैया अपने शाही शौक के लिए भी जाने जाते हैं। उन्हें घुड़सवारी, शूटिंग, प्लेन उड़ाना, जंगल सफारी और शिकार करने का शौक है। कई बार उनका ये शौक उनके जीवन पर खतरा भी बन चुका है।

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रघुराज प्रताप सिंह के दादा थे राज्यपाल और पिता थे हिंदुवादी नेता

रघुराज का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को प्रतापगढ़ के राजपूत भदरी रियासत (Bhadri State) में पिता उदय प्रताप सिंह (Father Uday Pratap Singh) और माता मंजुल राजे के यहां हुआ। इनके दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह (Dada Raja Bajrang Bahadur Singh) , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल (Governor of Himachal Pradesh) रह चुके थे। रघुराज के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पादाधिकारी रह चुके हैं। इनकी माता मंजुल राजे भी एक शाही परिवार की है। राजा भैया अपने परिवार के पहले ऐसे सदस्य थे, जिन्होंने पहली बार राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया। उदय प्रताप सिंह की छवि इलाके में एक दबंग और कट्टर छवि के राजनेता की थी।

भदरी रियासत के कुंवर राजा भैया के राजनीति में आने के खिलाफ थे पिता

भदरी रियासत (Bhadri State)  के कुंवर राजा भैया कानून की डिग्री हासिल करने के बाद सक्रिय राजनीति में उतरना चाहते थे, लेकिन उनके पिता इसके लिए तैयार नहीं थे। कहा तो ये भी जाता है कि पिता उदय प्रताप सिंह अपने बेटे की शिक्षा के भी खिलाफ थे, लेकिन उनकी मां ने उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं होने दिया। एक दिन राजा भैया ने अपने पिता के सामने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की, पिता ने उन्हें गुरूजी से अनुमति लेने को कहा। वहां से अनुमति मिलने के बाद साल उत्तर प्रदेश की सियासत में साल 1993 में रघुराज प्रताप सिंह का सियासी सफर शुरू हुआ।

कुंडा के कुंवर राजा भैया, सात बार जीत चुके हैं चुनाव

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साल 1993 के बाद से कुंडा और राजा भैया एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। साल 1993 में शुरू हुआ जीत का क्रम साल 2022 तक जारी है। चुनाव दर चुनाव उनके जीत का मार्जिन बढ़ता गया। हालांकि, इस साल हुए विधानसभा चुनाव में उनका मार्जिन पहले से कम हो गया, फिर भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के जोड़ लगाने के बावजूद वो जीतने में कामयाब रहे। राजा भैया की सबसे बड़ी खासियत ये रही कि वो निर्दलीय जीतने के बावजूद मंत्री पद हासिल कर लेते थे।

यूपी की राजनीति ने जिस समय जैसी करवट ली, राजा भैया ने अपने आप को उस हिसाब से ढाल लिया। 1996 के विधानसभा चुनाव में जिस कल्याण सिंह ने उन्हें कुंडा का गुंडा बताकर लोगों से उन्हें हराने की अपील की, चुनाव बाद वो उन्हीं के कैबिनेट में नजर आए। बीजेपी में राजनाथ सिंह का कद बढ़ने के बाद वो उनके करीब चले गए और उनकी सरकार में भी मंत्री बन गए। बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद एकबार फिर उन्होंने अपना सियासी आका बदला और मुलायम सिंह यादव के करीब चले गए। जिसके कारण वो पहले मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट में और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव की कैबिनेट में मंत्री बने।

कुंडा में राजा भैया के परिवार का रसूख है कायम

कुंडा स्थित राजा भैया के आवास को बेंती कोठी कहा जाता है। जहां पर पहले उनके दादा, फिर पिता और अब वो जनता दरबार लगाया करते हैं। आज भी सप्ताह में दो बार ये दरबार लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में फरियादी जुटते हैं। न्याय तंत्र सुलभ होने के बावजूद अभी भी वहां की जनता कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने की बजाय राजा भैया की अदालत में न्याय के लिए पहुंचती है। उनके दरबार में जमीन, परिवार से लेकर तमाम तरह के विवाद के मामले आते हैं, जिनका न्यायपूर्वक वो निपटारा करते हैं।

राजा भैया के इसी बेंती कोठी आवास के पीछे 600 एकड़ का तालाब है। जिसके बारे में कई खौफनाक किस्से मशहूर हैं। माना जाता था कि उस तालाब में राजा भैया ने घड़ियाल पाल रखे थे और अपने दुश्मनों को उसी तालाब में फेंक देते थे। इस तालाब से एकबार नरकंकाल मिलने के बाद इन अफवाहों ने और जोर पकड़ा। हालांकि, राजा भैया इस बात को लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं। वो बताते हैं कि एकबार 1990 के दशक में पूर्व पीएम चंद्रशेखर के सामने बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने उनसे तालाब में घड़ियाल रखने की बात पूछी थी।

मायावती की सरकार में कसा था शिकंजा

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राजा भैया का यूपी की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती से 36 का आंकड़ा रहा है। मायावती ने अपने शासनकाल में राजा भैया और उनके पिता को अपहरण और धमकाने के मामले में जेल भेज दिया था। पिता के महल और भदरी कोठी पर पुलिस के छापे भी पड़े। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा जैसा कठोर कानून लगा दिया था। उनपर गैंगस्टर एक्ट के तहत भी मामला दर्ज हुआ था। हालांकि, मुलायम सिंह यादव की सरकार आने के बाद उनपर लगे पोटा कानून की धाराओं को खत्म कर दिया गया। राजा भैया जब जेल से छूट थे, तब उनके समर्थकों ने नारा लगाया था, ‘जेल का ताला टूट गया, राजा भैया छूट गया’।

राजा भैया का विवादों से रहा है गहरा नाता

राजा भैया लंबी-चौड़ी हिस्ट्रीशीट रखने वाले बाहुबली राजनेता हैं। उनपर 47 मुकमदे दर्ज हैं। वो किसी न किसी मामले को लेकर विवाद में आते रहे हैं। साल 2012 में कुंडा में डीएसपी जिया उल-हक की हत्या कर दी गई थी। उनके क्षेत्र में हुए इस हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी। राजा भैया मीडिया में खलनायक की तरह पेश किए जाने लगे थे। उस दौरान वो सपा सरकार में मंत्री हुआ करते थे। दवाब में आकर अखिलेश यादव ने उनसे इस्तीफा ले लिया। इस मामले की सीबीआई जांच कराई गई। जिसमें राजा भैया को क्लीनचिट मिल गई। नतीजतन ने उन्हें 8 माह बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था।

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