मुख्यमंत्री ने सभी जिलों के कलेक्टरों को निर्देश दिए कि वे एयर एंबुलेंस सेवा को और प्रभावी बनाएँ तथा उन क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ दुर्घटनाएं अधिक होती हैं। ऐसे स्थानों पर गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों को तुरंत राहत देने के लिए एयर एंबुलेंस का प्राथमिकता से उपयोग किया जाए।
भोपाल: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने समत्व भवन में जल गंगा संवर्धन अभियान और एयर एंबुलेंस सेवा की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने ऐलान किया कि राज्य की एयर एंबुलेंस सेवा को अब डायल- 100 और पुलिस सेवा से जोड़ा जाएगा, ताकि गंभीर बीमार मरीजों या दुर्घटनाग्रस्त घायलों को ‘गोल्डन ऑवर’ के भीतर त्वरित इलाज के लिए एयरलिफ्ट किया जा सके।
मुख्यमंत्री ने सभी जिलों के कलेक्टरों को निर्देश दिए कि वे एयर एंबुलेंस सेवा को और प्रभावी बनाएँ तथा उन क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ दुर्घटनाएं अधिक होती हैं। ऐसे स्थानों पर गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों को तुरंत राहत देने के लिए एयर एंबुलेंस का प्राथमिकता से उपयोग किया जाए। साथ ही, ब्लैक स्पॉट्स का नियमित अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की जाए और स्वास्थ्य विभाग के साथ समन्वय बना कर चलें।
बैठक में डॉ. यादव ने जल संरक्षण के लिए चल रहे सरकारी प्रयासों को धार्मिक आस्थाओं से जोडऩे की रणनीति पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अगले तीन महीनों में आने वाले प्रमुख पर्वों और व्रतों के साथ जल संरक्षण, वृक्षारोपण और पर्यावरण रक्षा के संदेश को जोड़ा जाएगा। इससे लोगों की आस्था के माध्यम से पर्यावरण सरंक्षण को जनआंदोलन का स्वरूप दिया जा सकेगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि अक्षय तृतीया से लेकर रक्षाबंधन तक के विभिन्न पर्वों जैसे गंगा दशहरा, वट सावित्री, निर्जला एकादशी, हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज, कजरी तीज और रक्षाबंधन को जल, वृक्ष और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा जाएगा।
परिक्रमा पथ के 321 स्थलों की पोर्टल पर मैपिंग
इन अवसरों पर कुओं और जलाशयों की पूजा, जल दान, वृक्षों को राखी बांधना, बरगद और नीम जैसे वृक्षों की पूजा जैसे कार्य किए जाएंगे। डॉ. यादव ने नर्मदा परिक्रमा मार्ग के विकास को भी एक अहम प्राथमिकता बताया। उन्होंने कहा कि परिक्रमा पथ के 321 स्थलों की पोर्टल पर मैपिंग की जा चुकी है। इन स्थानों पर परिक्रमार्थियों के लिए विश्राम, भोजन, संतों के ध्यान- कक्ष और कुटिया जैसी सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है। सरकार का लक्ष्य है कि एक ओर जहां लोगों की जान बचाने के लिए आधुनिक चिकित्सा सेवाओं को बेहतर बनाया जाए, वहीं दूसरी ओर पारंपरिक सांस्कृतिक माध्यमों से जल और पर्यावरण की रक्षा को जनसहभागिता से जोड़ा जाए।