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‘प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा का निधन भारतीय बौद्धिक जगत के लिए अत्यंत शोकाकुल करने वाला’

प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा (Madhabendra Nath Mitra) का 20 जून 2025 को निधन हो गया। भारतीय दर्शन, तर्कशास्त्र एवं तुलनात्मक विचारधारा के क्षेत्र में अपार योगदान देने वाले प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा का 20 जून 2025 को देहावसान हो गया। यह समाचार भारतीय बौद्धिक जगत के लिए अत्यंत शोकाकुल करने वाला है।

By संतोष सिंह 
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प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा (Madhabendra Nath Mitra) का 20 जून 2025 को निधन हो गया। भारतीय दर्शन, तर्कशास्त्र एवं तुलनात्मक विचारधारा के क्षेत्र में अपार योगदान देने वाले प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा का 20 जून 2025 को देहावसान हो गया। यह समाचार भारतीय बौद्धिक जगत के लिए अत्यंत शोकाकुल करने वाला है। प्रो. मित्रा न केवल एक विलक्षण विद्वान थे, बल्कि वे एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने पूर्व और पश्चिम की दार्शनिक परंपराओं के बीच संवाद की नई दिशाएं खोलीं।

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प्रो. मित्रा का जन्म 8 जून 1937 को हुआ था। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित संस्थानों से प्राप्त की और जीवन भर जादवपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन एवं शोध के माध्यम से ज्ञान की साधना करते रहे। उनका प्रमुख कार्यक्षेत्र तर्कशास्त्र (Logic) रहा, विशेषतः भारतीय न्याय प्रणाली और पाश्चात्य तर्कशास्त्र के बीच तुलनात्मक अध्ययन। उनके लेखन में भारतीय दर्शन की सूक्ष्मता और पाश्चात्य विचार पद्धति की तार्किक गहराई का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

उनकी विद्वत्ता केवल पुस्तकीय नहीं थी। वह एक जीवंत संवादधर्मी शिक्षक और मार्गदर्शक भी थे। उनके अनेक शिष्य आज विभिन्न विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों तथा वैश्विक अकादमिक मंचों पर उनके विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रो. मित्रा ने ज्ञान को केवल अर्जन की वस्तु नहीं, बल्कि संवाद और सह-अस्तित्व की प्रक्रिया के रूप में देखा। उन्होंने बार-बार यह बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा की समकालीन प्रासंगिकता को समझना और उसे वैश्विक विमर्शों में लाना कितना आवश्यक है।

उनकी लेखनी में गंभीरता के साथ-साथ संवेदनशीलता भी थी। वे जीवन, समाज, धर्म और भाषा के जटिल विषयों को सुलझे हुए और गहरे दार्शनिक दृष्टिकोण से देखते थे। उनके लेख, व्याख्यान, शोध-प्रबंध और संवाद आज भी अनेक विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए पथप्रदर्शक हैं।

उनका निधन न केवल एक महान विद्वान का अवसान है, बल्कि एक बौद्धिक परंपरा के दीप के बुझ जाने जैसा है, जो हमें सदैव प्रकाश और विवेक का बोध कराता रहा। आज जब हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तो यह केवल एक औपचारिक कर्तव्य नहीं, बल्कि उनके प्रति ज्ञान, करुणा और संवाद की उस परंपरा को जीवित रखने का संकल्प भी है, जिसके वे जीवन पर्यंत प्रवक्ता रहे। शत् शत् नमन, प्रोफेसर माधवेंद्र नाथ मित्रा। आपका विचार और योगदान अमर है।

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श्रद्धांजलि लेख : लविवि में दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो. राकेश चंद्रा

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