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मंडलायुक्त का ड्रीम प्रोजेक्ट धरातल पर हुआ फिसड्डी साबित, छात्र नहीं जानते टेलीस्कोप और रॉकेट का नाम, 101 नक्षत्र शाला पर हुए 2 करोड़ 28 लाख रूपये खर्च

नगर निगम द्वारा बनाये गए संविधान पार्क और हनुमान वाटिका पर देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. हर युवा को हर नागरिक को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संविधान को जाकर वहां देखना चाहिए पढ़ना चाहिए.

By Sushil Singh 
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मुरादाबाद:- छात्रों को अंतरिक्ष और विज्ञान की बुनियादी जानकारी देने के उद्देश्य से जनपद के 101 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शुरू की गई नक्षत्रशाला योजना अब विफल होती नजर आ रही है. मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह के निर्देश पर इस योजना को ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया था. लेकिन हकीकत यह है कि इन नक्षत्र शालाओं में अध्ययनरत छात्र टेलीस्कोप को दूरबीन और रॉकेट को हवाई जहाज बता रहे हैं.

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गुरुवार को उच्च प्राथमिक विद्यालय भैंसिया में जब नक्षत्र शाला में पढ़ रहे छात्रों से पर्दाफाश की टीम ने अंतरिक्ष और विज्ञान से जुड़े सवाल पूछे गए तो कोई भी छात्रा संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. कक्षा 8 की छात्रा हिना से जब टेलीस्कोप के बारे में पूछा गया तो उसने उसे “दूरबीन” बताया वहीं दूसरी छात्रा आलिया ने रॉकेट को “हवाई जहाज”बताया. अन्य छात्राओं से जब नक्षत्रशाला के उपकरणों के बारे में जानकारी मांगी गई तो वे बगले झांकती नजर आई. यह दर्शाता है कि नक्षत्र शालाओं में विज्ञान की पढ़ाई केवल नाम मात्र की हो रही है. हालांकि जिले में बनी 101 उच्च प्राथमिक विद्यालय के विज्ञान के शिक्षकों को नक्षत्र शाला में उपयोग होने वाले यंत्रों के बारे जानकारी दिलाने के बेसिक शिक्षा विभाग की ओर तीन महीने का प्रशिक्षण दिया गया था. तीन महीने की ट्रेनिंग भी बेअसर नजर आई. यह विशेष प्रशिक्षण दिया गया था ताकि वे नक्षत्र शालाओं में बच्चों को बेहतर विज्ञान एवं अंतरिक्ष शिक्षा दे सकें. बावजूद इसके बच्चों को बुनियादी जानकारी भी नहीं दी जा सकी. विद्यालय की विज्ञान शिक्षिका ऋतु अग्रवाल से जब इस विफलता के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “जिन बच्चों से आपने सवाल किए, वे स्कूल में नियमित रूप से आते ही नहीं हैं. अभी तक एक-दो बार ही क्लास में शामिल हुए हैं. विद्यालय के नक्षत्रशाला के कक्ष में कक्षा 8 के बच्चों को पढ़ाया जा रहा था। शिक्षिका ऋतु अग्रवाल ने बताया कि विद्यालय भवन की स्थिति भी नक्षत्रशाला के उद्देश्यों में रोड़ा बन रही है। विद्यालय परिसर में खड़े एक पेड़ की डाल गिरने से कक्षा 8 की छत का लिंटर क्षतिग्रस्त हो गया है। मरम्मत कार्य अब तक नहीं हुआ है, जिससे मजबूर होकर  नक्षत्र शाला को ही कक्षा 8 की कक्षा के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। ऐसे में वहां अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई की कोई संभावना ही नहीं रह गई है।

ड्रीम प्रोजेक्ट बना शो-पीस:-

मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह ने इस योजना को विद्यार्थियों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने की मंशा से शुरू किया था. लेकिन पर्याप्त संसाधनों  के शिक्षकों की उदासीनता, अनदेखी और सुनियोजित मॉनिटरिंग के अभाव के कारण यह प्रोजेक्ट जमीनी स्तर पर शो-पीस बन कर रह गया है. करोड़ों खर्च के बाद भी छात्र उपकरणों को पहचान नहीं पा रहे हैं और न ही इस विषय की समझ विकसित हो पाई है।

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नक्षत्र शाला के निर्माण पर आया खर्च:-

नक्षत्र शालाओं का निर्माण ग्राम पंचायतों की विकास निधि से कराया गया है. नक्षत्र शाला योजना सरकार की ओर कोई अलग से बजट नहीं आया था. पंचायतों की निधि से नक्षत्र शाला बनाने के जिम्मेदारी निभा रहे. डीसी आदिल ने बताया कि लगभग 2 लाख 60 हजार के आस पास नक्षत्रशाला के कक्ष बनाने और यंत्रों पर खर्च आया था. उन्होंने बताया कि सभी ग्राम पंचायतों से भुगतान कर लिया गया था. सभी 101 ग्राम पंचायतों में लगभग 2 करोड़ 28 लाख रुपये खर्च हुए है.

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बिमलेश कुमार ने बताया कि सभी शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षित किया गया था. लेकिन अब नक्षत्रशाला में इस्तेमाल हो रहे यंत्रो के बारे शिक्षकों ने विज्ञान विषय में खुद भी पढ़े होंगे. लेकिन अगर कोई शिक्षक बच्चों को नक्षत्रशाला के माध्यम से अंतरिक्ष का ज्ञान नहीं दे पा रहा तो ऐसे शिक्षकों को दोबारा प्रशिक्षण दिलाया जाएगा.

सुशील कुमार सिंह

मुरादाबाद

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